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आया 'काल बैसाखी', तबाही संग मौसम भी होगा खुशनुमा

       
           

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, पूर्वोत्तर राज्यों, छत्तीसगढ़, झारखण्ड ,बिहार एवं उत्तर प्रदेश सहित अधिकांश उत्तरी भारत के क्षेत्रों में 15 - 30 अप्रैल के मध्य मौसम एक विशिष्ट रूप में करवट बदलता है , जिसके तहत तात्कालिक प्रभाव से आँधी, बिजली की कड़क, ओला गिरना एवं वर्षा होने जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होकर भीषण तबाही मचाने के साथ ही साथ मौसम को भी खुशनुमा बना देती है। इस तरह के आँधी तूफान को बोल - चाल की भाषा में 'काल बैसाखी'( बैसाख का काल) कहा जाता है, जबकि मौमम वैज्ञानिक इसे 'नार वेस्टर्स' कहा जाता है।

      वैसे देखा जाय तो 'काल बैसाखी' नामक यह आँधी -तूफान मानसून आने से पहले तक एक वायुमण्डलीय अस्थिरता की दशा होती है, जिसमें वायु की गति तेज हो जाने पर यह तूफान विनाशकारी भी हो जाता है।अल्प समय में ही ऐसे तूफानों से काफी क्षति हो सकती है, इसीलिए इसे काल बैसाखी अर्थात् बैसाख माह का काल कहा जाता है। काल बैसाखी के आगमन की पूर्व जानकारी दे पाना भी सम्भव नहीं होता है। इस समय होने वाली वर्षा की ' मैंगो शावर' भी कहा जाता है, क्यों यह वर्षा आम की फसल हेतु विशेष उपयोगी होती है।
       
काल बैसाखी उत्पन्न होकर भारत के उत्तरी- पूर्वी राज्यों एवं बंगला देश में भी सक्रिय हो जाता है, जहाँ इसे 'नार वेस्टर्स' या 'नार्वेस्टर' कहा जाता है। चूँकि यह तूफान 'नार्थ ईस्ट' में आता है एवं पश्चिम( वेस्ट) से होकर उत्तर- पश्चिम( नार्थ वेस्ट) की तरफ चला जाता है और उत्तर भारत में प्रवेश कर जाता है, इस लिए इस तूफान को नार्थ वेस्ट के मेल से 'नार वेस्टर्स' या 'नार्वेस्टर' कहा जाता है।
     
काल बैसाखी एक स्थानीय प्रकार का तूफान है जो स्थानीय मौसमी दशाओं के चलते अति तीव्र गति से अचानक विकसित होता है और चक्रवात की तरह एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसीलिए इस तूफान का पूर्वानुमान लगाना या पूर्व चेतावनी देना संभव नहीं हो पाता है। काल बैसाखी आने का पहला संकेत यह होता है कि आकाश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में काले बादल छाने लगते हैं, जिसकी ऊपरी बाह्य रेखा धनुषाकार होती है। इस तूफान में हवा पहले धीरे-धीरे  गति से आगे बढ़ते हुए पुनः तीव्र गति पकड़ कर तेज आँधी का रूप धारण कर लैता है। खासतौर से बंगाल की खाड़ी से होने वाली नमी एवं उसका प्रवाह ही काल बैसाखी के उत्पति का कारण बनता है।जब इस समय गर्मी एवं लू से वातावरण में अस्थिरता आ जाती है तो उस स्थिति में कम दबाव का क्षेत्र इन नमी युक्त हवाओं को अपनी तरफ खींचता है तो हवाएँ गर्म होकर ऊपर उठती हैं। रिक्त स्थान को भरने हेतु नम हवाएँ पुनः तेजी से उस रिक्त स्थान की ओर झपटती हैं और वह भी गरम होकर ऊपर तेजी उठते हुए आँधी के रूप में तूफान का रूप ग्रहण तबाही मचाते हुए आगे बढ़ती जाती हैं। काल बैसाखी तूफान प्रायः शाम को 5 बजे से रात 9 बजे के मध्य आती हैं और अलग- अलग स्थानों पर एक साथ या अलग- अलग समयों पर भी आ सकता है। काल बैसाखी की समाप्ति के बाद तापमान में तेजी से गिरावट आती है, जिससे गरमी से राहत मिलती है और मौसम दो - चार दिनों के लिए खुसनुमा हो जाता है।
     
 काल बैसाखी 15 से 30 अप्रैल के बीच तीन - चार बार आ जाता है। इस वर्ष का पहला काल बैसाखी 18 अप्रैलको आया और कोलकाता सहित पूरे पश्चिम बंगाल को अपने प्रभाव में लिया, जिसमें 58 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से हवाएँ प्रवाहित हुईं। हालाँकि इस तूफान से बहुत नुकसान नहीं हो पाया। काल बैसाखी में हवा की गति 50 से 90किलोमीटर के मध्य या कभी - कभी 120 किलोमीटर तक हो जाती है। अलीपुर , कोलकाता स्थित भारतीय मौसम विभाग केन्द्र के अनुसार 23 अप्रैल तक दो  - तीन बार काल बैसाखी आ सकता है।
     
उधर अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता के कारण पूरे उत्तर भारत के मौसम में अस्थिरता का दौर चल रहा है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार एवं मौसम की भविष्यवाणी करने वाली अन्य एजेंसियों के अनुसार 25 अप्रैल के मध्य दो -तीनों दिनों तक आँधी - तूफान के साथ वर्षा हो सकती है एवं ओले भी पड़ सकते हैं ,जिसकी शुरूआत 19 अप्रैल को बलिया सहित पूर्वांचल के अन्य जिलों में हल्की आँधी सहित वर्षा होकर एवं ओला पड़कर मौसम अपना मिजाज दिखा चुका है और आने वाले दिनों में भी मौसम की अनिश्चितता बरकरार रहेगी। इस समय होने वाली वर्षा रवी की फसल के लिए विशेष हानिकारक होगी।


प्रसिद्ध खगोलविद डा. गणेश पाठक की कलम से

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