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इंद्रियों के दमन से व्यक्ति बनता है यशस्वी:- जीयर स्वामी


 


दुबहर:-गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर बलिया यज्ञस्थल पर श्री जीयर स्वामी जी महाराज के दर्शन करने हेतु काफी संख्या में लोग जूटे। सुबह से ही  श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया जो देर रात तक चलता रहा। बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश से आदि जगहों से काफी संख्या में लोग श्री जियर स्वामी जी महाराज के दर्शन करने हेतु जुटे हुए थे। अनुमान के मुताबिक एक लाख से अधिक लोगों ने स्वामी जी का दर्शन किया। तथा प्रसाद पाया। यज्ञ समिति की तरफ से काफी संख्या में स्वयंसेवक लोगों की सेवा में लगे रहे।स्वामी जी महाराज ने कहा कि बिना वजह किसी भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए किसी को भी कष्ट नहीं देना चाहिए अपने जीभ के स्वाद के लिए किसी भी जीव को मारकर खाना बहुत ही बड़ा अपराध है। इससे मनुष्य को बचना चाहिए।


    इन्द्रियों के दमन से व्यक्ति बनता है यशस्वी धर्म की रक्षा करने वालों की रक्षा धर्म करता है कहीं भी जायें, वहां से दुर्गुण और अपयश लेकर नहीं लौटें। उत्पन्न परिस्थितियों में अपने विवेक से निर्णय लें, जिससे भविष्य कलंकित न हो पाए। प्रयास हो कि वहाँ अपने संस्कार संस्कृति एवं परम्परा के अनुरूप कुछ विशिष्ट छाप छोड़कर आयें, ताकि तत्कालिक परिस्थितियों के इतिहास में आप का आंकलन विवेकशील एवं संस्कार संस्कृति संरक्षक के बतौर किया जा सके।  उन्होंने भागवत कथा के प्रसंग में इन्द्रियों के निग्रह की चर्चा की। इन्द्रियों को स्वतंत्र छोड़ देने से पतन निश्चित समझें। एक बार अर्जुन इन्द्रलोक में गये हुए थे। वहाँ उर्वशी नामक अप्सरा का नृत्य हो रहा था। नृत्य के पश्चात् अर्जुन शयन कक्ष में चले गये। उर्वशी उनके पास चली गयी। अर्जुन ने आने का कारण पूछा । उर्वशी ने वैवाहिक गृहस्थ धर्म स्वीकार करने का आग्रह किया। अर्जुन ने कहा कि मृत्यु लोक की मर्यादा को कलंकित नहीं करूँगा। उर्वशी एक वर्ष तक नपुंसक बनने का शाप दे दिया। अर्जुन दुर्गुण और अपयश लेकर नहीं लौटे। उर्वशी का शाप उनके लिए अज्ञातवाश में वरदान सिद्ध हुआ। स्वामी जी ने कहा कि 'धर्मो रक्षति रक्षितः। यानी जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है। जो धर्म की हत्या करता है, धर्म उसकी हत्या कर देता है। 'धर्म एव हतो हन्ति। इसलिए धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि जो हमारे पाप, अज्ञानता और दुःख का हरण करे, वो हरि है। वेदांत दर्शन की बात की जाए तो संसार में आने का मतलब ही होता है, कि इसमें रहना नहीं है। परिवर्तन का नाम संसार है। आश्चर्य है कि ऐसा जानकर भी जीव स्थायी ईश्वर को भूल नश्वर संसार में आसक्त है। जैसे घुमते चाक पर बैठी चीटी और ट्रेन के यात्री कहें कि हम तो केवल बैठे हैं। यह उचित नहीं, क्योंकि शरीर से श्रम भले न लगे लेकिन यात्रा तो तय हो रही है। मन से ईश्वर के प्रति समर्पण से वे रक्षा करते हैं।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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