आजादी के सात दशक बाद भी कूड़े के ढेर में बचपन तलाश रहा 'भारत'
सिकन्दरपुर,बलिया। सर्वशिक्षा अभियान को कचरे के ढेर में कबाड़ चुनते बच्चें सीधे चुनौती दे रहे हैं। उनके अभिभावक भी उन्हें स्कूल भेजने की जगह उन्हें सुबह कूड़ा चुनने के लिए रवाना कर देते हैं। यह बच्चे नशे की लत में भी फंस गये हैं। स्कूल चलो अभियान में इन्हें जोड़ने के लाख दावे सरकार करे लेकिन सच तो यह है कि ये आज भी शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं से दूर रोजी-रोटी की तलाश में भटकते रहते है।
आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी तमाम नौनिहालों की तकदीर नहीं बदली। गरीब परिवारों के बच्चे आज भी बस्ते की जगह कंधों पर आजीविका का बोझ लिये चल रहे है। कॉपी-किताबों से नाता तोड़ वह रोजाना दो रुपये कमाई के लिए जूझते दिख रहे है। नि:शुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम की राह में यह बड़ी चुनौती है। करीब 12 फीसदी बच्चे कक्षा पांच तक की शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर पाते बालश्रम विरोधी सख्त कानून, सर्वशिक्षा अभियान व शिक्षा अधिकार अधिनियम सभी उपरोक्त सच्चाई के सामने बौने साबित हो रहे है। छह से 14 वर्ष के अधिकांश बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते। अगर दाखिला भी ले लें तो बहुत ज्यादा दिनों तक उनकी पढ़ाई नहीं चलती। ये कूड़ा बटोरने में ही अपना भविष्य तलाशते है। कुछ तो स्टेशनों पर खाली बोतल इकट्ठा करते, कारखानों में मजदूरी करते, होटलों में इन्हे जूठे बर्तन मांजते देखा जा सकता है।
By-SK Sharma
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