वक्त का यें परिन्दा रुका है कहा,....गांव मेरा मुझे याद आता....!
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रामगढ़,बलिया। ख्यातिलब्ध गजल गायक जसवंत सिंह ने जब वक्त का यें परिन्दा रुका हैं कहां... गांव मेरा मुझे याद आता....! नगमा गुनगुनाया होगा तब सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह गीत किसी दिन सांसद आदर्श गांव केहरपुर समेत दर्जनों कटान पीड़ित गांव के वाशिंदों के दर्द को उकेरने का माध्यम बनेगा। लेकिन समय का पहिया कुछ यूं चला कि आज कटान पीड़ितों की जुबां पर अपने जख्म को बयां करता यह गीत बरबस ही चला आ रहा है।
बहरहाल, बैरिया तहसील क्षेत्र की केहरपुर, सुघर छपरा, गोपालपुर, प्रसाद छपरा, उदईछपरा, बुधनचक, मुरलीछपरा, पांडेयपुर, अठगावां के लोगों को प्रत्येक वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है। साल के नौ महीनों तक लोग तिनका- तिनका जोड़ कर आशियाना खड़ा करते हैं। बीमारी का इलाज, बच्चों की शिक्षा व बेटी के हाथ पीले करने की चिंता भी होती है। लेकिन वर्षा के तीन महीनों के दौरान आई बाढ़ घर-बार के साथ ही उम्मीदों को भी बहा ले जाती है। बाढ़ की समस्या के स्थायी निदान हेतु आवाजें उठती रही है, लेकिन सियासतदानों के आश्वासन की घूंट से ही प्रभावितों को संतोष करना पड़ता है।
आपदा की घड़ी में उन्हें बस राहत के नाम पर त्रिपाल, बाढ़ राहत सामाग्री, लंच पैकेट, अपर्याप्त भूसा देकर इतिश्री कर लिया जाता है। इसके अलावा बाढ़ व सुखा से निपटने को लेकर स्थायी रूप से कोई कदम नहीं उठाया जाता है। बाढ़ से विस्थापित सैकड़ों परिवार बीते कई वर्षो से एनएच 31 के किनारे शरण लिये हुए हैं। और उसके मुंह से बह एक ही बात निकलती हैं कि ‘अपना तो एनएच -31 हैं रखवाला...!’
वहीं कई परिवार अन्य जगहों पर पलायन कर चुके हैं। विस्थापितों का परिवार आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बाढ़ से पूर्व विस्थापित परिवारों का अपने गांव में अच्छी खासी गृहस्थी चल रही थी। वे अपने परिवार के साथ सुखमय जिंदगी जी रहे थे। ऐसे परिवारों के समक्ष अब ना सिर्फ आर्थिक संकट बल्कि भोजन के लाले भी पड़े हुए हैं। या यूं कहें कि सभी बाढ पीड़ित दाने-दाने को मोहताज बने हुए हैं तो कोई अतिशोयक्ति नहीं होगी।
रिपोर्ट- रविन्द्र नाथ मिश्र
रामगढ़,बलिया। ख्यातिलब्ध गजल गायक जसवंत सिंह ने जब वक्त का यें परिन्दा रुका हैं कहां... गांव मेरा मुझे याद आता....! नगमा गुनगुनाया होगा तब सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह गीत किसी दिन सांसद आदर्श गांव केहरपुर समेत दर्जनों कटान पीड़ित गांव के वाशिंदों के दर्द को उकेरने का माध्यम बनेगा। लेकिन समय का पहिया कुछ यूं चला कि आज कटान पीड़ितों की जुबां पर अपने जख्म को बयां करता यह गीत बरबस ही चला आ रहा है।
बहरहाल, बैरिया तहसील क्षेत्र की केहरपुर, सुघर छपरा, गोपालपुर, प्रसाद छपरा, उदईछपरा, बुधनचक, मुरलीछपरा, पांडेयपुर, अठगावां के लोगों को प्रत्येक वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलनी पड़ती है। साल के नौ महीनों तक लोग तिनका- तिनका जोड़ कर आशियाना खड़ा करते हैं। बीमारी का इलाज, बच्चों की शिक्षा व बेटी के हाथ पीले करने की चिंता भी होती है। लेकिन वर्षा के तीन महीनों के दौरान आई बाढ़ घर-बार के साथ ही उम्मीदों को भी बहा ले जाती है। बाढ़ की समस्या के स्थायी निदान हेतु आवाजें उठती रही है, लेकिन सियासतदानों के आश्वासन की घूंट से ही प्रभावितों को संतोष करना पड़ता है।
आपदा की घड़ी में उन्हें बस राहत के नाम पर त्रिपाल, बाढ़ राहत सामाग्री, लंच पैकेट, अपर्याप्त भूसा देकर इतिश्री कर लिया जाता है। इसके अलावा बाढ़ व सुखा से निपटने को लेकर स्थायी रूप से कोई कदम नहीं उठाया जाता है। बाढ़ से विस्थापित सैकड़ों परिवार बीते कई वर्षो से एनएच 31 के किनारे शरण लिये हुए हैं। और उसके मुंह से बह एक ही बात निकलती हैं कि ‘अपना तो एनएच -31 हैं रखवाला...!’
वहीं कई परिवार अन्य जगहों पर पलायन कर चुके हैं। विस्थापितों का परिवार आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बाढ़ से पूर्व विस्थापित परिवारों का अपने गांव में अच्छी खासी गृहस्थी चल रही थी। वे अपने परिवार के साथ सुखमय जिंदगी जी रहे थे। ऐसे परिवारों के समक्ष अब ना सिर्फ आर्थिक संकट बल्कि भोजन के लाले भी पड़े हुए हैं। या यूं कहें कि सभी बाढ पीड़ित दाने-दाने को मोहताज बने हुए हैं तो कोई अतिशोयक्ति नहीं होगी।
रिपोर्ट- रविन्द्र नाथ मिश्र
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