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जाने क्यों गन्ने की खेती से विमुख हो रहे है किसान

 



रतसर (बलिया) कस्बे सहित आसपास के क्षेत्रों में गन्ने की खेती की परम्परा अब धीरे - धीरे समाप्त होती जा रही है। एक समय ऐसा भी था जब पुरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी। तथा इसकी पेराई के लिए जगह-जगह कोल्हू लगाए जाते थे। लेकिन पिछले तीन दशक से कृषकों ने गन्ने की खेती के प्रति काफी उदासीनता दिखाई। इसके पीछे जो तथ्य उभर कर आए है उनमें सबसे प्रमुख है गन्ने का लाभकारी मूल्य न मिलना । गांवों में खेत श्रमिकों की संख्या में उत्तरोत्तर कमी तथा किसानों द्वारा हल - बैल न रखना। जनऊपुर गांव के किसान सिद्धनाथ पाण्डेय का कहना है कि खेती में काफी मेहनत तथा खर्च आता है। फसल में तमाम बीमारी भी लग जाती है। इससे उपज प्रभावित होती है। कृषकों को इसकी अत्याधुनिक तरीके के बारे में कोई विशेष जानकारी नही दी जाती है। नूरपुर के कृषक शिवानन्द वर्मा का कहना है कि गांवों में खेतों में काम करने के लिए मजदूरों की कमी का अभाव रहता है। जगदेवपुर के कृषक सुरेश पाण्डेय ने बताया कि गांवों में गन्ने की खेती के जरिए सामाजिक संबन्धों में भी प्रगाढ़ता रहती थी। नूरपुर के कृषक राजनाथ वर्मा ने बताया कि गन्ने की पेराई से प्राप्त खोइया से गांवों में खाना बनाने के लिए इंधन एक विकल्प के रूप में उपलब्ध हो जाता था।


रिपोर्ट : धनेश पांडेय

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