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अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है मंगल पांडे का स्मारक


 



*दुबहर ।*"मीटे ना जो मिटाने से कहानी उसको कहते हैं, वतन के काम जो आए जवानी उसको कहते हैं।"

 जो इंसान अपने देश धर्म जाति के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करता है उसी का इतिहास लिखा जाता है । इस कड़ी में शहीद मंगल पांडे जी का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा गया है ।  स्वतंत्रता संग्राम प्रथम बिगुल 1857 में फूंकने वाले शहीद मंगल पांडेय को आज ही के दिन 8 अप्रैल को फांसी दी गई थी। बागी बलिया के इस वीर सपूत की देशभक्ति से हर कोई प्रभावित था। यहां तक की मंगल पांडेय की देशभक्ति के जल्लाद भी कायल थे। रोचक तथ्य है कि इनकी फांसी एक दिन टल गई थी, क्योंकि जल्लादों ने मंगल पांडेय को फासी देने से मना कर दिया था।

मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी 1831 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गाजीपुर जनपद, बलिया तहसील के गंगातीरी गांव नगवा में हुआ था। इनके माता का नाम जानकी देवी और पिता का सुदिष्ट पांडेय था। मंगल पांडेय भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के बैरकपुर छावनी में 34 नंबर देसी पैदल सेना की,19वीं रेजिमेंट की 5वीं कंपनी के 1446 नंबर के फौजी सिपाही थे। इस बालक में शुरू से ही धार्मिक विचार एवं देशभक्ति का जज्बा कूट-कूट कर भरा था।

उस समय हिंदुस्तान में अंग्रेजी साम्राज्य का बोलबाला था। अंग्रेजों के अत्याचार से सभी भारतीय सैनिक उद्वेलित थे। इसी बीच मंगल पांडेय को पता चला कि जो कारतूस दांत से खींचकर चलाते हैं,वह गाय और सुअर की चर्बी से तैयार होती है। यह घटना आग में घी का काम किया। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में अचानक मंगल भड़क उठे,और अपने साथियों को क्रांति करने के लिए ललकारे। बैरकपुर छावनी अंग्रेजी सिपाहियों द्वारा घेर ली गई। इधर आहूति देने को तैयार मंगल पांडेय ने सार्जेंट मेजर 'ह्यूशन' और लेफ्टिनेंट 'बाॅब' को मौत के घाट उतार कर क्रांति की शुरुआत कर दी। मंगल पांडेय पकड़े गए और उन पर मुकदमा चला। छः अप्रैल 1857 को फौजी अदालत में मंगल पांडेय को राजद्रोह एवं बगावत का दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी देने का आदेश दिया गया। 7 अप्रैल को फांसी देने के लिए दो जल्लादों को बुलाया गया, लेकिन उन्होंने सूली पर चढ़ाने से इनकार कर दिया। क्योंकि मंगल पांडेय की देशभक्ति के जल्लाद भी कायल थे। दोबारा कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए और 8 अप्रैल को प्रातः 5:30 बजे बैरकपुर छावनी के परेड ग्राउंड में उन्हें फांसी दे दी गई। मंगल पांडेय  को फांसी देने के बाद पूरा भारत सिहर उठा। जगह-जगह अंग्रेजो के खिलाफ बगावत के स्वर मुखर होने लगे

बैरकपुर छावनी से उठी क्रांति की चिंगारी 1942 में शोला बनकर धधक उठी। 10 मई को मेरठ व 11 मई को दिल्ली में भड़का विद्रोह,15 अगस्त 1947 को देश आजाद कराकर ही शांत हुआ। आज भले ही मंगल पांडेय हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी राष्ट्रभक्ति, साहस व बलिदान हमेशा नई पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा।


लेकिन आजाद भारत के इतने वर्षों बाद भी मंगल पांडे के नाम पर बना स्मारक आज भी खस्ताहाल एवं जर्जर होकर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है वर्तमान योगी सरकार ने स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक करोड़ 55 लाख रुपया आवंटित भी किया था लेकिन लेकिन यह वित्तीय वर्ष भी बीत गया लेकिन स्मारक में अभी तक पुनरुद्धार का कार्य शुरू नहीं हो सका क्षेत्रीय लोगों ने प्रदेश के मुखिया आदित्यनाथ योगी का एक बार फिर से ध्यान आकृष्ट कराते हुए मंगल पांडे के स्मारक के सुंदरीकरण की मांग की है।

रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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