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पांच साल में 73 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि निगल गई बाढ़


रामगढ़, बलिया।जिले की नदिया बारिश में तटवर्ती किसानों के लिए कहर बन जाती है ।केवल सरकारी आकड़ो पर ही गौर करें तो बीते 5 वर्षों में ही 73.346 हैक्टेयर खेती की जमीन नदियों में विलीन हो गई हैं।यह तो सरकारी आंकड़ा है।लेकिन हकीकत में हर वर्ष ही सैकड़ों हेक्टर जमीन नदियों में समा जाती है।बहुत से किसान जानकारी के अभाव में सहायता राशि से वंचित रह जाते हैं।
जिले की प्रमुख नदियों के कटान से बैरिया तहसील क्षेत्र के तटवर्ती लोग बेघर हो कर दर दर की ठोकर खा रहे हैं। तहसील के क्षेत्रफल का एक हिस्सा प्रतिदिन घाघरा और गंगा में समा रहा है ।उपजाऊ भूमि जाने से किसानों की कमर टूटती जा रही है ।दूसरी ओर शासन प्रशासन की लापरवाही साफ झलक रही है। जनप्रतिनिधियों और अफसर दोनों जिम्मेदारी के प्रति संवेदनशील दिख रहे हैं। वैसे तो हर साल तकरीबन सौ हेक्टेयर उपजाऊ जमीन नदियों में समा जाती हैं. लेकिन जिला प्रशासन इसे कागजों पर नहीं दर्शाता। तहसील का क्षेत्रफल लगातार सिमटता जा रहा है।
बैरिया तहसील का क्षेत्रफल 42 हजार 213 वर्ग हेक्टेयर है। सिंचित भूमि 17 हजार 363 हेक्टेअर .असिंचित भूमि 12 हजार 913 हेक्टेयर है। जबकि 34 हजार 76 हेक्टेयर में आबादी है। इसी तरह अनुपयोगी भूमि आठ हजार 461 हैक्टेयर है ।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013-14 में 11,212हेक्टेयर .वर्ष 2014-15 में 05,50 हेक्टेयर वर्ष 2015-16 में 21,30 हेक्टेयर व वर्ष 2016-17 में 0 9.12 8 हेक्टेयर भूमि घाघरा तथा गंगा में समा गया है।वर्ष 2018-19 में 14.45 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन को घाघरा व गंगा नदी ने निगल गयी है।यह तो सिर्फ सरकारी आंकड़े है लेकिन हकीकत में इससे अधिक उपजाऊ भूमि नदी की ग्रास बन चुकी है।तहसील प्रशासन ने घर भसी वाले लोगो को ऊंट के मुंह में जीरा के समान सहायता राशि देकर चुप बैठ गया।जबकी  तहसील प्रशासन जिन किसानों की भूमि को गंगा व घाघरा नदी ने  निगल गई है उन किसानों को मुआवजा देना उचित नहीं समझा। तभी तो आज तक किसानों को एक भी रुपया नसीब नहीं हुआ।और न लेखपालों से किन किसानों की कितनी भूमि कटान की भेंट चढ़ गया पड़ताल कराई गई।



कहां कहां हो रही कटान प्रशासन को इसका भान नहीं


रामगढ़, बलिया। बैरिया तहसील प्रशासन को अभी भी अंदाजा नहीं है की कटान कहां-कहां हो रहा है । इस कटान में कुल कितनी भूमि घाघरा एवं गंगा की लहरों की भेंट चढ़ चुकी है। नियमानुसार तहसील के लेखपाल और कानूनगो को इलाके की जमीन की पड़ताल करनी चाहिए ।लेकिन उनकी रुचि इस काम में अब तक नहीं दिखी ।कई वर्षों से लगातार माझा. गोपाल नगर तारी.आधिसिघुआ. भुसवला, जगदीशपुर, इब्राहिमाबाद नौबरार, केहरपुर, चौबेछपरा, गोपालपुर, गंगा उपपार नौरंगा में जबरदस्त कटान हो रहा है। सैकड़ों एकड़ परवल का खेत नदी में विलीन हो चुका है। लेकिन जानकारी के अभाव में किसान अनुदान के लिए उप जिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र नहीं देते हैं। अभी भी दर्जनों परिवारों के आशियानों पर घाघरा व गंगा नदी का खतरा मंडरा रहा है .लेकिन सुधि लेने के लिए अब तक कोई जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा है।
इस बाबत श्रवन कुमार राठौड़ तहसीलदार बैरिया ने कहा जिन कास्तकारों की भूमि कटान की भेंट चढ़ चुकी है।उन्हें अनुदान दिए जाने है। कटान वाले क्षेत्रों का पड़ताल करने के बाद काश्तकारों को अनुदान दिया जायेगा। कहा कि काश्तकार भी आवेदन पत्र दे कर पड़ताल करा सकते है। जिससे किसानों को आर्थिक मदद दिलाया जा सके।       

रिपोर्ट रविन्द्र नाथ मिश्र

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