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तीन स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देती है, मां चण्डी भवानी


रसड़ा (बलिया) ;उत्तर प्रदेश के बलिया लखनऊ राजधानी मार्ग पर रसड़ा तहसील क्षेत्र के पहाड़पुर गांव के दक्षिण दिशा में पूर्व अवस्थित उचेड़ा गांव में माँ चण्डी भवानी के मंदिर पर शारदीय नवरात्र अष्ठमी तिथि के दिन श्रद्धालुओं का लगा तांता उमड़ा जनसैलाब हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक ऐसी मान्यता है कि नवरात्र में यहां माता रानी को खप्पर, प्रसाद, नारियल, चुनरी आदि चढ़ाकर पूजा आराधना करने से मां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। बताते चलें कि मिर्जापुर
विंध्याचल की माँ विंध्यवासिनी की प्रतिमूर्ति के रूप में विख्यात इस मंदिर में मां के सिरमुखी स्वरूप का यहां भक्तों को दर्शन होता है। जो चैबीस घण्टे में तीन रूप धारण करती है । मां सुबह में बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था व रात्रि में वृद्धावस्था के रूप में दर्शन देने वाली मां चण्डी नवरात्र के अलावा भी सच्चे मन से दरबार में आने वाले भक्तों की मनोवांछित मनोकामनाएं पूर्ण करती है। मां चण्डी के स्वमेव उचेड़ा गांव में अवतरित होने की कथा भी काफ़ी पुरानी व कौतूहल पूर्ण है।
 बताते चलें कि कालान्तर में लगभग 179 वर्ष पूर्व मंदिर के समीपस्थ गोपालपुर गांव से एक ब्राम्हण प्रतिदिन विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने के लिये पैदल ही जाया करते थे। काफी दिनों बाद वृद्धावस्था में जब वे चलने फिरने में असमर्थ हो गये थे तो उन्होंने मां के दरबार में आखिरी बार पहुंच कर कहा कि मां अब मै आपके पास नहीं आ पाऊंगा। इसलिये अब आपको मेरे साथ ही चलना होगा। यह बात सुन मां विंध्यवासिनी ने उन्हें अपेक्षित आश्वासन दिया। वहां से लौटने के बाद उक्त ब्राम्हण रोज की तरह अपने घर में सो रहे थे, कि एक दिन स्वप्न में मां विंध्यवासिनी ने मंदिर के स्थान पर स्वमेव अवतरित होने की बात बतायी। स्वप्न देखते ही ब्राम्हण की नींद टुट गयी और भोर होते ही वे गांव के पूरब और दक्षिण स्थित उचेड़ा गांव की ओर निकल गये जो उन दिनों जंगल के रूप में था वहां जा पहुंचे। वहां जाने के बाद जब उन्होंने जमीन की खुदाई करायी तो वहां मां विंध्यवासिनी के सिरमुखी प्रतिमा दिखायी दी।
उन्होंने प्रतिमा के पूर्ण स्वरूप को बाहर निकालने के लिये काफी दिनों तक खुदाई करायी किन्तु प्रतिदिन मां की प्रतिमा जमीन के अंदर धंसती ही जा रही थी। बाद में मां ने उन्हें पुनः भक्त को स्वप्न दिखाकर बताया कि मेरा स्वरूप यही रहेगा और मै इसी रूप में यहीं से लोककल्याण करती रहूंगी। तत्पश्चात ब्राम्हण ने यहां मंदिर का निर्माण कराया और तभी से निर्माण व सुन्दरीकरण होते-होते आज यहां मां चण्डी का भव्य व विशाल मंदिर स्थापित हो चुका है। जहां चैत्र व शारदीय नवरात्र में मेला व विविध कार्यक्रमों का आयोजन होता है। जिसमे लाखों श्रद्धालुजन सहभागिता करते के लिए गैर जनपदों से श्रद्बालु आते है। आज भी निःसंतान, असाध्य रोगों से पीड़ित लोगों की पीड़ा मां चण्डी के दर्शन करते ही दूर हो जाते है। मां के मंदिर पर इलाके के सैकड़ों गांवों के लोग शादी, मुण्डन, जनेव संस्कार आदि शुभ कार्य होने पर इनकी विशेष पूजा करते है।

रिपोर्ट पिन्टू सिंह 

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