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बहुत ही देर तक शीशे में चेहरा नहीं रहता! बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फासला रखना


रसड़ा (बलिया): आधुनिक डिजिटल युग की कहानी  लिखनी पङी आज कोरोना कहर बन गया रोते हिन्दुस्तानी बरगर पीज्जा फास्ट फूङ अब घर घर   बोतल पानी सारी दुनियाँ बदल गयी है ब्यवस्था में आधुनिकता का बोलबाला है पुरातन ब्यवस्था से लोग दूरी बनाते जा रहे है! खान पान रहन सहन पहनावा सब दिखावा के लिये किया जा रहा है।

बर्तमान परिवेश में देश का अधिकांश हिस्सा कोरोना के चपेट मे आज ङाक्टर सलाह दे रहे है शरीर स्टेमना बढाना है तो पुरानी परम्परा को अपनाना होगा । पुरातन ब्यवस्था मे आना होगा!जङी बूटी घर के उत्पाद को ही तवज्जह देना होगा। तभी कोरोना जैसी घातक बिमारी से निजात मिल सकता है! जितनी तेजी से कोरोना भारत मे बढ रहा हैउसके हिसाब से खतरा  कारण  भारत कृषि प्रधान देश है आज भी पुरानी परम्पराये ग्रामीण इलाको मे चल रही है । बदलते जमाने के भोजन अभी शहरो तक मे ही कायम है।हाहाकार भी शहरो में ही है। गांव आज भी सुरक्षित है। पाश्चात्य  देशों की नकल कर आधुनिक जीवन जीने वाले  तबाही देख रहें है।नकली दूध, नकली खाना, प्रदूषित हवा, बासी पानी , सब कुछ बनता जा रहा है शहरो मे खानदानी!गावों में मोटा अनाज मेहनत कस ब्यवस्था आपसी समरसता और साधारण जीवन शैली खेती किसानी शूद्ध भोजन जरूरत भर कोई भी प्रयोजन न भेद न भाव सभी का समायोजन! कोरोना को भगाने के लिये कारगर साबित हो रहा है।

जरा सोचिये हजूर दस रुपये
 किलो टमाटर लेकर ताजा चटनी खा सकते हैं! मगर हम डेढ़ सौ रुपये किलो टमाटो साॅस खाते हैं वो भी  एक दो माह पहले बनी हुई बासी।शहर के लोगो के लिये यह आधुनिकता की पहचान है! बङी हस्ती होने का निशान है। पहले हम एक दिन पुराना घड़े का पानी नहीं पीते थे! कहते थे बासी हो गया है! अब तीन माह पुराना बोतल का पानी बीस रुपया लीटर खरीद कर पी रहे हैं।क्यो की हम आधुनिक हो गये पढ लिखकर बुद्धिमानी के शिखर पर है।चालीस रू लीटर का दूध हमे महंगा लगता हैं! और सत्तर रुपये लीटर का दो महीने पहले बना सोङा वाटर कोल्ड ड्रिंक हम पी लेते हैं। क्यो की वह आधुनिकता की निशानी है! दो सौ रू पाव मिलने वाला शरीर को ताकत देने वाला ड्राई फ्रुट हमे महंगा लगता है! मगर 400 रुपया का मैदे से बना पीज्जा शान से खा रहे हैं।पार्टी दे रहे गर्व से लोगो को खिला रहे है!

 बाटी चोखा देहाती हो गया है।पीज्जा बरगर  खाटी हो गया है। अपनी रसोई का सुबह का खाना हम शाम को खाना पसंद नहीं करते! जब कि कंपनियों के छह छह माह पुराने सामान हम खा रहे हैं!उसकी क्वालटी लोगो को बता रहे है। जबकि हम जानते है कि खाने को सुरक्षित रखने के लिए उसमें प्रिजर्वेटिव मिलाया जाता है।तीन  माह के लाक डाऊन में सबको समझ आ गया होगा कि बाहर के खाने के बिना भी हमारा जीवन चल सकता हैं! बल्कि बेहतर चल सकता है। फीर भी आधुनिकता की चासनी मे लिपट कर जीवन को आजीवन रोग की दहलीज पर हम आप जबरीया खङा कर रहे है। बङा बनने का ख्वाब सजाये न इधर के हो रहें न उधर के हो रहें है। कोरोना ने सब कुछ बदल दिया वास्तविकता से रूबरू करा दिया।न होटल न रेस्तर न मखमली बिस्तरा  घर के भीतर घर का खाना  घर मे रहना  अनावश्यक सोच पर पाबन्दी लगा दिया! हर आदमी स्वस्थ है! मस्त है!कोरोना अभी तक ग्रामीण इलाको में पश्त है! लगभग पच्चास लाख मजदूरों का आगमन गावों मे शहरो से हुआ है! तब भी गांव सुरक्षित है संरक्षित व  ब्यवस्थित है!गावो मे पाश्चात्य जीवन शैली अभी पूरी तरह से पाँव नही पसार सका है।आज की आधुनिकता भरे माहौल मे हर कोई एक दुसरे को आजमा रहा है! देखा देखी कर रहा है! एक दुसरे से आगे जाने की होङ मचा रखा है! बराबरी का ख्वाब देख रहा है!जिसका परिणाम सुखान्त नही बल्कि दुखान्त हो रहा है। इस भागम भाग की जिन्दगी में सब कुछ पलक झपकते ही खतम हो रहा है। कोरोना के इस चार माह के प्रवास  के दौरान भगवान भी मुंह मोङ लिये! मानव समाज को उसके कर्मो की सजा भुगतने के लिये तन्हा छोङ दिये है! जिस तरह से सब कुछ बदल रहा है आने वाला एक बार फीर एक बार पुरातन परम्परा घर घर मुस्करायेगी ।

 रिपोर्ट पिन्टू सिंह

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