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देवोत्थान एकादशी के बाद गूंजेगी शहनाई


रतसर (बलिया) कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी बुद्धवार को है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देव उठनी एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु चार माह की निद्रा से जागते है इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में निद्रा करने के कारण चातुर्मास में विवाह और मांगलिक कार्य थम जाते है। वही देवोत्थान एकादशी पर भगवान के जागने के बाद शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है। अध्यात्मवेत्ता पं०भरत पाण्डेय ने बताया कि प्रबोधिनी एकादशी के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी को पीले रंग का प्रसाद जरूर चढाना चाहिए। मान्यता है कि भगवान विष्णु को पीले रंग का प्रसाद और फल चढाने पर जल्दी खुश हो जाते है और आशीर्वाद देते है।

तुलसी विवाह का करे आयोजन :

देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की प्रथा है। इस एकादशी को तुलसी के पौधे और भगवान शालिग्राम का विधि अनुसार विवाह करे। सांध्यकाल में तुलसी के पौधे पर एक घी का दीपक जरूर जलाए। ऐसा करने से जीवन में सुख सम्पति और वैभव का आगमन होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इसी एकादशी पर भगवान विष्णु ने माता तुलसी संग विवाह किया था यही कारण है कि इस दिन तुलसी विवाह करने की परम्परा है। पं० भरत पाण्डेय ने बताया कि देव उठानी (देवोत्थान) एकादशी पर तुलसी विवाह करने से पारिवारिक या वैवाहिक जीवन काफी सुखद व्यतीत होता है। देवोत्थान एकादशी से मांगलिक कार्य और शादी-विवाह आरंभ हो जाएगें। नवम्बर और दिसम्बर के 17 शुभ मुहूर्त है। एकादशी तिथि 25 नवम्बर को 2 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर 26 नवम्बर को सुबह 5  बजकर 10 मिनट तक रहेगा। देवोत्थान एकादशी के दिन से ही शादी, मुंडन कार्य, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य शुरु हो जाते है। हृषिकेष पंचाग के अनुसार नवम्बर माह में 25 और 30 नवम्बर को शुभविवाह के दो लग्न है।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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