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किताब 'मैं गली हूं...' का विमोचन एक पत्रकार का 'संवेदनशील' दस्तावेज


 


बलिया: जिले के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार पांडेय की कविता की किताब 'मैं गली हूं...' का लोकार्पण शनिवार को किया गया. जनपद के एनसीसी चौराहा स्थित एक होटल में किताब का विमोचन हुआ. इस अवसर पर जिले के वरिष्ठ साहित्याकर डॉ. जनार्दन राय, वरिष्ठ पत्रकार अशोक सिंह, वरिष्ठ पत्रकार मनोरंजन सिंह, साहित्यकार शिव जी पांडेय 'रसराज', एडवोकेट रणजीत सिंह सहित टाउन इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डा. अखिलेश सिन्हा मौजूद रहे. 


कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी और साहित्याकर आशीष त्रिवेदी ने किया. इस अवसर पर एक पत्रकार द्वारा लिखी गई कविताओं को सराहा गया. "मेरी फितरत भी कुछ पत्तों सी है, जब भी टूटता हूं, मैं उड़ने लगता हूं..." का जिक्र कई वरिष्ठों ने किया. इसके साथ ही विवेक को उनकी आगामी कृतियों के लिए शुभकामनाएं भी दी गई. 


इस अवसर पर जनपद के वरिष्ठ साहित्याकर डॉ. जनार्दन राय ने कहा कि कविता मनुष्यता की भाषा है. यह हमारी संवेदनाओं को जगाती है. इसी संवेदना की कसौटी पर विवेक की कविताएं प्रभावित करती हैं. इनकी कविताओं में अखबारी जीवन के लंबे अनुभव को भी देखा जा सकता है. पत्रकार अशोक ने कहा कि विवेक शुरू से ही पत्रकारिता जगत में एक संवेदनशील पत्रकार रहे हैं. इनकी संवेदना इनकी कविताओं में भी नजर आ रही है. 


लेखक के बारे में: 


बलिया से पत्रकारिता शुरू करने वाले विवेक पांडेय करीब 20 सालों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. ‘बलिया’ में सन 2002 से ग्रामीण खबरों को दुरुस्त करने से करियर की शुरूआत की और ‘बीजिंग’ तक न्यूज कंटेंट पर काम किया. 


फिलहाल विवेक अग्रणी ओटीटी प्लेटफार्म ZEE5 में वरिष्ठ संपादक हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल तीनों माध्यमों में अनुभव के साथ ही कंटेंट इंटेलिजेंस और बिग डेटा टेक्नोलॉजी पर काम करने वाले चुनिंदा पत्रकारों में शुमार हैं. दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान के साथ ही एबीपी न्यूज, यूसी ब्रॉउजर से जुड़े रहे हैं. 


क्राइम और पॉलिटिकल बीटों पर अच्छी पकड़ रही है. मूल रूप से यूपी के बलिया के रहने वाले विवेक की प्रारंभिक शिक्षा से लेकर स्नातक तक  की पढ़ाई बलिया से हुई. भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता से मास कम्यूनिकेशन में एम.ए. किया.


किताब के बारे में: 


एक पत्रकार के तौर पर दुनिया की जो सच्चाई देखने को मिली, उसी को शब्द दे दिए गए हैं. भावनाओं के उमड़ते-घुमड़ते तेवर कागज पर उतारे गए हैं. लेखक का पहला प्रयास है और कविताओं को सच की तर्ज पर ही गढ़ा गया है. कविता की कसौटी पर रंग सुनहरा नहीं उतरेगा लेकिन, शब्दों की गूंज आपतक पहुंच जाए यही कोशिश है. 


इस किताब में रिश्तों की बातों से लेकर जंगल तक के शब्द चित्र उकेरे गए हैं. कुछ व्यक्तिगत भावनाओं से लबरेज भी हैं. न्यूज ‘जल्दी में लिखा गया इतिहास’ है लेकिन इस किताब को आने में वक्त लग गया. पाठकों की पसंद ही असली मुहर होगी. हर एक पन्ने पर प्रतिक्रिया की उम्मीद के साथ प्रस्तुत है 'मैं गली हूं...'


प्रार्थी: 


विवेक कुमार पांडेय

सीनियर एडिटर, ZEE5 

8826907888



रिपोर्ट त्रयंबक पांडेय गांधी

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