जहां खत्म होते हैं रिश्ते नाते, वहां मिलती हैं ईश कृपा
मनियर, बलिया । सद्गुरु ही भवसागर से पार लगा सकता है क्योंकि वह भवसागर में तैरने वाली मनुष्य रूपी बेड़ा का खेवनहार है । गुरु की कृपा से भवसागर को पार करने में वायु अनुकूल हो जाती है और कठिनता से मिलने वाला साधन गुरु की कृपा से सहज में उसे प्राप्त हो जाता है।
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो।
सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
करनधार सद्गुरु दृढ़ नावा।
दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।। उक्त पंक्तियां रामचरित मानस के चौपाई का भावार्थ प्रेम रावत जी ने प्रोजेक्टर के माध्यम से राज ज विद्या केंद्र मनियर द्वारा परशुराम स्थान के विनय मंच के पास दूसरे दिन रविवार की रात को व्यक्त किया। प्रेम रावत जी ने अंतरराष्ट्रीय शांति वक्ता के रूप में कहा कि देहरादून में मैं जब शांति का उपदेश दे रहा था तो वहां के लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया। कहा कि मुझे शांति बान्ती नहीं चाहिए ।हमें पैसा चाहिए । वहीं बरसों बाद जब मैं यहां शांति का संदेश दे रहा हूँ तो लोग धैर्य से सुन रहे हैं । देश में लाखों-करोड़ों नहीं सुरक्षा के नाम पर अरबों रुपये खर्च हो रहे हैं फिर भी छोटे उम्र के बच्चे हथियार उठा रहे हैं। शांति बाहर नहीं शांति अंदर में है। मनुष्य समझता है कि वह अकेले चलता है लेकिन वह नहीं समझता कि उसके साथ काम, क्रोध, मद, लोभ और अहंकार रुपी दुर्गुण भी उसके साथ चलते हैं। इसके साथ-साथ दया ,विश्वास ,आनंद, स्पष्टता रुपी सद्गुण भी साथ रहती है।दुर्गुण छोड़ सद्गुण को अपनाने की आवश्यकता है। अगर भगवान मंदिर में हैं तो क्या उन्हें छोड़कर घर आना ठीक है । भगवान मिल जाएंगे तो क्या हम उन्हें छोड़ देंगे ।भगवान को तो आदर करने की जरूरत है जो हमारे अंदर ही विराजमान है । हम जहां जाते हैं वह वहां जाते हैं ।जिनके निकल जाने के बाद संसार के सारे रिश्ते-नाते खत्म हो जाते हैं। जो हम श्वांस ले रहे हैं वह ईश्वर की कृपा से मिला है उसका आदर करना चाहिए।
रिपोर्ट राम मिलन तिवारी
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