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जाने कैसे बदल गई प्रधानों की तकदीर



चिलकहर(बलिया)शासन द्वारा प्रदत्त धन से ग्राम पंचायतों की तकदीर भले ही न बदली हो पर पांच वर्ष के लिये चुने गये सरपंच(प्रधान) की तकदीर जरूर बदल जा रही है।इसकी बानगी देखने को मिल रही है क्षेत्रीय गांवों में जब ग्राम सभा का चुनाव सन्निकट है तो आरोप प्रत्यारोप का दौर गांवों में शुरू हो गया है तो गांवो की गलियां पोस्टरों से भरी पड़ी है। वहीं सोशल मिडीया पर चुनाव लड़ने की तीखी बहसे देखी जा रही है वहीं कुछ जगहों पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू होकर रह गया है।                  आंकड़ों पर नजर दौड़ायी जाये तो प्रदेश में शासन द्वारा १४वें वित्त की दूसरी किस्त के रूप में समस्त पंचायतों को 6 हजार करोड़ रुपये दिए हैं तो राज्य सरकार ने अपने हिस्से से 2 हजार करोड़ रुपये जारी किए है। इसके साथ ही स्वच्छ भारत मिशन की तरफ से 4.945 करोड़ रुपये जारी करने की सूचनायें तैर रही है। मनरेगा के बजट में भी बढ़ोत्तरी हुई है इस पुरे पैसों को जोड़ दिया जाए तो औसतन एक व्यक्ति के लिए 1094 रुपये प्रति व्यक्ति सरकार द्वारा विकास हेतू दिये जा रहे है पर इतना सबकुछ होने के बाद भी बीसवीं सदी में गांवों में न तो समुचित विकास हो रहा है न ही ग्राम पंचायत के पैसे से तकदीर बदल पा रही है । हां इतना जरूर हो रहा है कि एक पंचवर्षीय योजना के लिये जुने जा रहे सरपंच की तकदीर व तस्वीर बदल जा रही है। 
जितना पैसा सरकार देती है अगर उसका 60/70 फीसदी पंचायतों में खर्च होता नहीं दिख रहा है, यहीं वजह है कि ब्लाक चिलकहर के  ग्रामीण अंचलो में पंचायत चुनाव लड़ने की होड़ युवाओं में लगी हुई है। जिनकी उम्र रोजगार तलाशने की है वह भी पंचायत स्तर का चुनाव लड़कर  गांवों का विकास करने का सब्जबाग दिखाते नजर आ रहे है।   गांवों में  जाए तो एक ही पंचवर्षीय योजना में गाँवों की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन न ऐसा नेता और प्रधान चाहते हैं और न ही  सरकारी मशीनरी धन के दुरूपयोग पर रोक लगा पा रही है। व गांवों का विकास कम जनता से चुने गये लोगों का विकास बढता ही जा रहा है।




रिपोर्ट : संजय पांडेय

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