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वन कटने से एवं वन्यजीवों के विनाश से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र होती जा रही असंतुलित : डा० गणेश कुमार पाठक


बलिया :  अमरनाथ मिश्र पी. जी. कालेज दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने वन्य जीवों के विनाश एवं उससे उत्पन्न संकट के बारे में एक भेंटवार्ता में बताया कि वन्यजीवों का विनाश खासतौर से अनियंत्रित रूपसे किए गए वन विनाश की देन है और यह वन विनाश अंधाधुन्ध विकास एवं मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया गया। वनों के विनाश होने से जीव- जंतुओं की प्राकृतिक शरणस्थली भी समाप्त होती गयी , फलतः इन जंगलों में निवास करने वाले या तो सदैव के लिए समाप्त हो गए या समाप्ति के कगार पर हैं। वन कटने से एवं वन्यजीवों के विनाश से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होती जा रही है, जिसके चलते अनेक प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेकर मानव का भी विनाश करने को तत्पर हैं।
       डा० पाठक ने बताया कि आई.पी.बी.इ.एस. की एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक 40 प्रतिशत जीव प्रजातियाँ लुप्तप्राय हो चुकी हैं। 1556 प्रजातियां सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं। 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। प्रत्येक चार में से एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। 6190 स्तनधारी प्रजातियों में से 559 सदैव के लिए विलुप्त हो गयी हैं और 1000 प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। समुद्र में भी बढ़ते प्रदू,ण से 267 समुद्री प्रजातियों के लिए संकट बरकरार है। संयुक्तराष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ दशकों में ही 10 लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी।
      डा० पाठक ने बताया कि आई.बी.पी.इ.एस. के एक रिपोर्ट के अनुसार आगामी दशक के दौरान हमारी धरती पर विद्यमान अनुमानित 8 मिलियन जीवधारियों एवं पादपों की प्रजातियों में से लगभग एक मिलियन प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना है। पृथ्वी की 75 प्रतिशत भूमि एवं 66 प्रतिशत समुद्री पर्यवरण में विशेष रूप से बदलाव आया है।आर्द्र भूमियों में से 86प्रतिशत भूमि का क्षेत्र समाप्त हो गया है। 40 प्रतिशत उभयचर एवं 33 प्रतिशत जलीय स्तनधारी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। मानव गतिविधियों के कारण 680 कशेरूकी प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। कुल ज्ञात 5.5 मिलियन कीटों की प्रजातियों में से लगभग 10 प्रतिशत पर विलुप्ति का खतरा मँडरा रहा है। 3.5 प्रतिशत घरेलू प्रजाति के पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। अब तक 68 प्रतिशत वैश्विक वन विनषँट किए जा चुके हैं। इस प्रकार आज वन विनष्ट होने से जल, जंगल, जीव, जमीन एवं जीवन के लिए घोर संकट उत्पन्न हो गया है।



रिपोर्ट : धीरज सिंह

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