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हिन्दी दिवस पर विशेष : हिन्दी भाषा नहीं भावों की अभिव्यक्ति है - डा० प्रमोद पाण्डेय


रतसर (बलिया) संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 को हिंदी भाषा को देश की राजभाषा बनाया था। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। हिन्दी के विकास में पत्र पत्रिका, सीरियल, हिन्दी फिल्मों का प्रमुख योगदान रहा है। देश दुनिया के लोगों में हिन्दी के प्रति सकरात्मक बदलाव आया है।  हिन्दी दिवस पर सोमवार को जनऊबाबा साहित्यिक संस्था निर्झर के तत्वाधान में हनुमत सेवा ट्रस्ट जनऊपुर के परिसर में कोरोना संक्रमण काल को देखते हुए वर्चुअल आनलाइन परिचर्चा की गई। इस अवसर पर राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित पूर्व प्रधानाचार्य कृपाशंकर सिंह ने बताया कि हर वर्ष हिन्दी दिवस पर हिन्दी को बचाने की बहस होती है और यह बहस कितनी कारगर होती है इसे जमीनी स्तर पर देश की अंग्रेजी माध्यम से संचालित कार्य प्रणाली में देखा जा सकता है। जहां सभी सूचनाओं का पहला प्रसारण अंग्रेजी और फिर अनुवाद के रूप में हिन्दी व अन्य भाषाओं में आता है। नवोदय विद्यालय अल्मोड़ा के उप प्राचार्य डा० प्रमोद कुमार पाण्डेय ने बताया कि नई शिक्षा नीति 2020 में भी बच्चों की सीखने की क्षमता को हीनता बोध से बाहर लाने के लिए मातृभाषा में शिक्षा की बात की गई है जिस पर आजादी के समय से ही बहस चल रही है। जिसमें मुख्य रूप से महात्मा गांधी द्वारा "नई तालीम" शिक्षा प्रणाली मातृभाषा के द्वारा शिक्षा की हिमायती थी लेकिन आजादी के बाद यह व्यवस्था महात्मा गांधी जी की मृत्यु के उपरान्त विचार बनकर रह गई। पूर्व प्रवक्ता श्री प्रेमनारायन पाण्डेय ने कहा कि अंग्रेजी हमारी मातृभाषा नही है फिर भी इसकी अनिवार्यता ने हमें अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा से दूर अंग्रेजी को कार्यभाषा बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। हिन्दी भाषा व भारतीयों की पहचान पर बहस आज से नही बल्कि यह बहस आजादी से पूर्व से चली आ रही है। अध्यात्मवेत्ता एवं पूर्व प्रधानाचार्य पं० भरत पाण्डेय ने कहा कि देश की प्रतिष्ठित सेवाओं में शुमार संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा इंग्लिश के वर्चस्व को तोड़ने में नाकाम रही क्योंकि यहां हर साल परीक्षा में चयनित विद्यार्थियों में अधिकांश का परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी होता है। कुछ गिने चुने छात्र होते है जो अपनी मातृभाषा और हिन्दी भाषा के जरिए इस पद तक पहुंच पाते है।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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