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जानें कहां बलिया का देशी चीनी देश गुलामी से आजादी तक इमरती है मशहूर

   

रसड़ा (बलिया) उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर के मुहल्ला नक्खास निवासी बेनीराम  देवी प्रसाद ने 1855 जब देश गुलाम था उन दिनों देशी घी की इमरती बनना शुरू किया इमरती की श्रेष्ठता व स्वाद को बरकरार रखा अपना कारोबार बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी  जैनपुर की प्रसिद्ध इमरती की महक डिजिटल युग में भी बरकरार रखा है।

प्रसिद्ध इमरती की खासियत यह है कि हरे उरद देशी चीनी और देशी धी से लकड़ी के आंच पर ही बनाईं जाती है । उड़द की दाल को सिलबट्टे पर पिसवाया जाता है। इमरती के लिए देशी चीनी आज भी बलिया से जाता है।

देशी घी से बनने के कारण इमरती गर्म और ढडी रहने पर भी बिना फ्रिज में इस इमरती को हफ्तों दिनों तक सही हालत में रखा जा सकता है।

  बलिया जिले का  रसड़ा तहसील क्षेत्र के टीकादेवरी नगपुरा गांव चार पीढ़ियों से देशी चीनी उत्पादन करने वाला यह  क्षेत्र आज गुमनामी बेरोजगारी के अंधेरे में गुम है। 

 हमेशा गुलजार रहने वाला यह क्षेत्र अब सन्नाटे में है

यहां के कल-कारखानों की बदौलत भरण-पोषण करने वाले अधिकांशतः परिवार  अब नहीं रहे लेकिन आज उनके बच्चे काम के अभाव में  महानगरों की तरफ जाना पड़ता हैं। 

 नगपुरा गांव में आजादी से पहले 1855मे  पहले देसी चीनी के दर्जनों कारखाने थे। नगपुरा की देसी चीनी की एक अलग मिठास कल भी थी और आज डिजिटल युग में भी उसी मिठास के बदौलत इस चीनी की डिमांड थीं।

यहा प्रतिदिन सैकड़ों बैलगाड़ियों पर लदा गुड़ नगपुरा बाजार में कई जनपदों से आ
ता था। जिससे यहां बड़ी रौनक रहती थी। उस दौरान यहां से देसी चीनी, आयातित वस्त्र, चावल व मसालों की खरीदारी के लिए सैकड़ों व्यापारी डेरा डाले रहते थे। देसी चीनी के कारखानों में सैकड़ों मजदूर काम करते थे।  आधुनिकता की दौर व सरकारी तंत्र की उपेक्षा ने इस उद्योग को चौपट करके रख दिया। आज इस क्षेत्र में सिर्फ एक कारखाना बचा है जिसमें निर्मित देसी चीनी आज भी जौनपुर में बेनी राम, देवी प्रसाद का मशहूर इमरती दुकान पर जाती है। जहां 440 रुपए किलो बिकता है इमरती

नगपुरा ग्राम में वर्तमान में देसी चीनी का कारखाना चलाने वाले एक मात्र राकेश  गुप्ता , राजेश गुप्ता,रमेश गुप्ता तीनों भाइयों के अनुसार  पांच किलो गुड़ से मात्र एक किलो देशी  चीनी तैयार होती  है। तब आसानी से देसी गुड़ मिल जाता था मगर अपने तरफ़ दी सहकारी  चीनी मिल बंद होने से इलाके के लोग अब नहीं बोते हैं ईख इसके वज़ह से कुशीनगर से गुड़ लाना पड़ता है ।


पिन्टू सिंह

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