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मनुष्य को अपनी संस्कृति और संस्कार के अनुसार जीवन यापन करना चाहिए:-जीयर स्वामी






दुबहर। भृगुक्षेत्र में गंगा नदी पर बने जनेश्वर मिश्रा सेतु के एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चतुर्मास यज्ञ के दौरान बुधवार की देर शाम श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनाते हुए महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी के परम शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने कहा कि अंत मे मनुष्य के साथ उसकी धन संपत्ति एवं व्यवस्था कुछ भी साथ नहीं जाता हैं । बंधु बांधव पत्नी और निकट के रिश्तेदार कोई साथ नहीं जाते ।  मनुष्य के अच्छे बुरे कर्म ही रह जाते है ,जिसकी चर्चा उसके ना रहने के बाद भी होती रहेगी । इसलिए मनुष्य अपना कर्म भगवान को समर्पित करके करें तो भगवान की भक्ति मिल जाएगी । उन्होंने कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान शंकर माता पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए ठंडा प्रदेश अमरनाथ क्षेत्र में ले गए जहां भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा कि आप कथा का श्रवण करते हुए बीच-बीच में हूंकारी अवश्य भरिएगा ,भगवान शंकर ने कथा आरंभ किया कुछ देर तक माता पार्वती ने हूंकारी भरी लेकिन उन्हें नींद आ गई । उसी क्षेत्र में एक पेड़ पर एक शुक का बच्चा भगवान की कथा को सुनते हुए माता पार्वती की आवाज में हूंकारी भरने लगा और पूरी कथा का श्रवण कर लिया । भगवान शंकर ने जब कथा समाप्त की और माता पार्वती से पूछा कि आपने कथा श्रवण किया तो माता पार्वती ने क्षमा मांगते हुए कहा कि भगवन मुझे माफ कीजिए मुझे नींद आ गई, भगवान शंकर ने कहा कि जब आपको नींद आ गई तो यह कथा सुना कौन उन्होंने देखा तो एक शुक का बच्चा अमर कथा को सुन चुका था । भगवान शंकर उसको त्रिशूल लेकर मारने के लिए दौड़े वह भागते भागते व्यास जी की पत्नी के मुख के माध्यम से उनके गर्भ में छिप गया । भगवान शंकर जब ब्यास जी के आश्रम में पहुँचे तब व्यास जी ने भगवान शंकर से सारा वृत्तांत सुनकर शुक  की रक्षा की बात कही ,इसके पश्चात शुक माता के गर्भ में 12 वर्षों तक विराजमान रहे । कथा के दौरान संत जीयर स्वामी ने कहा कि भगवान केवल भक्ति से प्राप्त होते हैं जब व्यक्ति भक्ति में लीन हो जाता है तो ज्ञान का कोई महत्व नहीं होता क्योंकि सभी कार्य शास्त्र के विधि सम्मत होने लगते हैं । कहां की कलयुग में कोई भी धार्मिक अनुष्ठान लंबे समय तक नहीं होना चाहिए इससे उक्त अनुष्ठान को भंग होने की आशंका बनी रहती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा से स्वयं को जोड़कर अपने कर्मों को करना ही भक्ति मार्ग है।  ब्रज, गोकुल, वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ग्यारह वर्षों तक निवास किए भगवान श्री कृष्ण मथुरा में चौदह  वर्षों तक रहे, सौ वर्ष भगवान श्री कृष्ण द्वारिका में रहें, भगवान श्री कृष्ण कुल एक सौ पच्चीस वर्षों तक इस धरा धाम पर रहे।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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