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मायापति से संबंध जोड़ना ही माया पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता :- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी




दुबहर:- क्षेत्र के जनेश्वर मिश्र सेतु  एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में  भारत के महान मनीषी सन्त त्

त्रिदंडी स्वामी जी  महाराज जी के कृपा पात्र परम शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी  ने सोमवार की देर शाम प्रवचन  के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं को श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनाते हुए आत्मदेव जी के प्रसंग की चर्चा करते हुए  कहा कि आत्मदेव जी के दो पुत्र हुए गोकर्ण और धुंधकारी। गोकर्ण जी धार्मिक प्रवृत्ति के हुए तथा धुंधकारी कुख्यात प्रवृति  के हो गए। धुंधकारी  ने आत्मदेव की सारी संपत्ति को वेश्यावृत्ति में लुटा दिया। वही गोकर्ण जी महाराज साधु संतों के साथ रह कर धार्मिक प्रविर्ती के हुए।

धुंधकारी के शराबी ,जुआरी व वेश्यागामी बन जाने के कारण। आत्मदेव जी का घर श्मशान बन गया। जिससे आत्मदेव जी काफी चिंतित रहते थे। 

उन्होंने कहा कि जो मनुष्य समय रहते अपनी आत्मा को सत कर्मों में नहीं लगा पाते हैं ,उनका इस धरती  पर आने का कोई मतलब नहीं होता है। उन्होंने कहा कि शरीर नश्वर है, आत्मा अविनाशी है। बतलाया कि शरीर आत्मा के अधीन होता है। प्रवचन के दौरान कहा कि मरने के बाद हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं। बतलाया कि जिसे हम अपनी आंखों से देखते हैं, जिसे हम कानों से सुनते हैं, जिसे हम महसूस करते हैं वह सब कुछ माया है। उन्होंने कहा कि माया पर विजय पाने के लिए मायापति से प्रेम आवश्यक हैं।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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