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शास्त्र ,संस्कार के अनुरूप मर्यादित जीवन जीना ही भगवान की भक्ति : जीयर स्वामी

 




दुबहर :-कभी भी अपने ज्ञान पर अहंकार नहीं होना चाहिए अहंकार करने से भगवान की उपासना नहीं हो पाती है।  संसार में रहते हुए गृहस्थ धर्म में सभी सत कर्मों को करते रहना चाहिए और उन कर्मों को भगवान में समर्पित कर देना चाहिए। फल की कामना का त्याग करके कर्म करने पर जीवन में आनंद ही आनंद है  आशा ही दुख का कारण है आशा का त्याग करने से सुख की प्राप्ति होती है ,साधन संसाधन होने के बाद भी त्याग मय जीवन जीना चाहिए।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज जी के  कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में शनिवार की देर शाम प्रवचन में कही। 

स्वामी जी ने कहा कि ज्ञानी को मर्यादित होकर जीवन जीना चाहिए।  ज्ञान प्राप्त हो जाने पर मर्यादित होकर सभी लोगों का अभिवादन करना चाहिए।  धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर लेने से ही सद्गति प्राप्त नहीं होती है ,बल्कि शास्त्र के अनुसार संस्कार के अनुरूप मर्यादित जीवन जीना ही भगवान की भक्ति है। स्वामी जी ने बताया कि जो लोग धर्म की आड़ में, धर्म  का चिन्ह धारण करके, धर्म का पालन नहीं करते हैं वे नर्क के अधिकारी होते हैं। जो मनुष्य मन वाणी और शरीर से धर्म का आचरण करता है तो उसकी आयु, धन सम्पत्ति , बल और कीर्ति में वृद्धि होती है। 

उन्होंने बताया कि कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि सदाचारी व्यक्ति के घर आसुरी प्रवृत्ति के लोग पैदा हो जाते हैं, और दुराचारी के घर संत सदाचारी पैदा हो जाते हैं।  इसका प्रमाण ध्रुव जी का वंश, प्रहलाद जी का वंश है।  ध्रुव जी की वंश परंपरा में आगे चलकर राजा वेन हुए वह राजा वेन राज सिंहासन को प्राप्त करके  निरंकुश राजा हो गया।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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