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जीवन में शांति के लिए कामना का त्याग आवश्यक:- जीयर स्वामी



दुबहर, बलिया :- जगत की व्यवस्था में लगें परंतु अपने मृत्यु और काल को याद करते रहना  चाहिए। जो व्यक्ति मृत्यु और काल को हमेशा याद करता है वह व्यक्ति इस संसार में रहकर भी संसार के अवस्थाओं से, संसार की दशाओं से, संसार की व्यवस्थाओं में लिप्त नही होता। जब हम काल और मृत्यु को भूल जाते हैं तब हम इस संसार में रह करके अपने को अंहकार में हो करके अपने को स्वयं अनीति, अन्याय, कुकर्म, उपद्रव की हम जननी बन जाते हैं, अधिकारी बन जातें हैं। इसलिए मनुष्य को यह बार बार यह जानना चाहिए की मृत्यु हमारी चोटी को पकड़ा हुआ है। कब इसके गाल में चले जाएंगे इसका कोई ठीक नही है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज की कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी महाराज ने दिनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत महायज्ञ में अपने प्रवचन के दौरान रविवार की देर शाम कहीं। 

स्वामी जी ने कहा कि जो व्यक्ति जीवन में शांति चाहता है वह कामना का त्याग  करे।कर्म करते हुए फल की कामना नही करना चाहिए। कर्म तो करना चाहिए लेकिन फल रहित होकर करना चाहिए। इसमें आत्म शांति मिलेगा। यदि नही भी फल की कामना करेंगे और अच्छे कर्म करेंगे तो फल हमें ही प्राप्त होगा। कामना रहित हो करके यदि कर्म करते हैं तो उसमें बहुत आनंद आता है।  कामना लेकर कोई काम करते हैं तो थोड़ा टेंशन, डिप्रेशन, शोक और कहीं भटकाव की संभावना बनी रहती है। जो जीवन में शांति चाहता है वह कामना का त्याग  करे। इससे हर पल, हर क्षण हमें शांति ही शांति है। आशा और कामना हमें उस फांसी पर हमे लटका देती है, उस सूली पर लटका देती है जब तक प्राण, जब तक स्वास रहता है तब तक हम कुछ कर हीं नही पाते। हमेशा संशय में रहते हैं। मनोरथ कभी समापन नही होती है।


रिपोर्ट:- नितेश पाठक 

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