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भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार :- जीयर स्वामी





दुबहर:- जनेश्वर मिश्र सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन करते हुए भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य जीयर स्वामी जी ने भगवान  विष्णु के अवतारों की चर्चा करते हुए मत्स्यावतार की कथा को विस्तार पूर्वक सुनाया।

स्वामी जी ने बतलाया की  भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पहला अवतार  मत्स्य अवतार के नाम से जाना गया। भगवान् श्रीहरि विष्णु का यह अवतार सृष्टि के अंत में हुआ था जब प्रलय काल आने में कुछ वक्त बचा था। सत्यव्रत मनु जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति हुई धर्मात्मा और भगवान् श्रीहरि विष्णु के भक्त थे। एक दिन जब सत्यव्रत मनु नदी तट पर पूजन और तर्पण कर रहे थे तब उनके अंजलि में नदी की धारा में बहकर छोटी सी सुनहरी मछली आ गयी और बोली हमारी रक्षा करें।

जैसे ही सत्यव्रत ने मछली को नदी के जल में छोड़ना चाहा, मछली बोली हे राजन जल के बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाते हैं। अवश्य कोई बड़ा जीव मुझे भी मारकर खा जायेगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा कीजिये। सत्यव्रत के हृदय में दया उत्पन्न हो उठी। उसने मछली को जल से भरे हुये अपने कमंडलु में डाल लिया। एक रात में मछली का शरीर इतना बढ़ गया कि कमंडल उसके रहने के लिये छोटा पड़ने लगा। अगले दिन मछली बड़ी हो गई तो एक मिट्टी के घड़े में रखना पड़ा। अगले दिन वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे एक बड़े से सरोवर में रखना पड़ा। अगले दिन मछली और बड़ी हो गई तो उसे समुद्र में डालकर उस समय मनु महाराज ने मछली से पूछा कि आप असाधारण  मछली हैं, आप अपना परिचय दीजिये।

बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि आप अवश्य परमात्मा हैं। यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइये के आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है।

तब भगवान् श्रीहरि विष्णु मछली से प्रकट हुये और बताया कि आज से सात दिन बाद प्रलय आने वाला है सृष्टि की रक्षा के लिये मैंने यह अवतार लिया है। आप एक बड़ी सी नाव बना लीजिये और उसमें सभी प्रकार की औषधि और बीज रख लीजिये ताकि प्रलय के बाद फिर से सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा हो सके।


स्वामी जी महाराज ने कहा कि प्रलय आने से पहले भगवान् सत्यव्रत के पास आये और उनसे कहा कि आप अपनी नाव को मेरी पुंछ में बांध दीजिये। सत्यव्रत परिवार सहित नाव पर सभी प्रकार के बीज और औषधि लेकर सवार हो गये और प्रलयकाल के अंत तक भगवान् श्रीहरि विष्णु के मत्स्य अवतार के सहारे महासागर में तैरते रहे। मत्स्य अवतार में भगवान् ने चारों वेदों को अपने मुंह में दबाये रखा और जब पुनः सृष्टि का निर्माण हुआ तो ब्रह्मा जी को वेद सौंप दिये। इस तरह भगवान् श्रीहरि विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलय काल से लेकर सृष्टि के फिर से निर्माण का काम पूरा किया। भगवान् श्रीहरि विष्णु ने कहा कि सृष्टि के प्रारंभ और अंत में सिर्फ मैं ही बचता हूं और कुछ बचता नहीं है। सृष्टि के निर्माण के समय जब चारों तरफ जल ही जल था तब पृथ्वी की स्थापना के लिये मत्स्य भगवान् ही महासागर के तल में जाकर अपने मुंह में मिट्टी लेकर आये थे और इससे जल के ऊपर पृथ्वी का निर्माण किया गया था।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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