लज्जा हमारे राष्ट्र की संस्कृति:- जीयर स्वामी
दुबहर :- हमारे द्वारा किए हुए कर्मों का फल सुख और दुख के रूप में हमें प्राप्त होता है। जिस प्रकार हमारे चाहने के बाद भी दुख हमारा पीछा नहीं छोड़ता है। ठीक उसी प्रकार से हम नहीं भी कामना करेंगे तो हमारा सुख और आनंद हमारे पास रहेगा। जैसे हम दुख के लिए प्रयास नहीं करते हैं। उसी प्रकार सुख के लिए भी हमें प्रयास नहीं करनी चाहिए। हमें कर्तव्य व कर्म को अच्छा रखना चाहिए।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान मंगलवार की देर शाम कहीं।
स्वामी जी ने कहा कि लज्जा हमारी राष्ट्र की संस्कृति है। जहां लज्जा नहीं रहती है वहां सब कुछ रहने के बाद भी कुछ रहने का औचित्य ही नहीं बनता है। लज्जा मानव की गरिमा है। अगर इसे संस्कृति से हटा दिया जाए तो पशु और मनुष्य में कोई अंतर हीं नहीं रह रह जाएगा। मनुष्य को गरिमा और लज्जा ( शर्म ) का ख्याल रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मन द्वारा, वाणी द्वारा, शरीर द्वारा भक्तिपूर्वक परमात्मा का ध्यान करते हुए उनके नाम, गुण, लीला, धाम इन चारों का जो उपासना करता है। यह श्रेष्ठ प्रायश्चित है।
प्रवचन के दौरान कहा कि मरने के बाद हमारे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं। कहा कि जो मनुष्य समय रहते अपनी आत्मा को सत्कर्म में नहीं लगा पाते हैं उनका इस धरती पर आने का कोई मतलब नहीं होता है।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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