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मानव जीवन निर्वाह की सफलता सदकर्मों के बिना संभव नहीं : लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी




दुबहर :- संत महात्मा का दर्शन, उनका आचरण उनके उपदेश, सत्संग केवल सुख ही सुख देते हैं। जो मानव अपना कल्याण चाहता है तो जीवन में सदाचार के साथ भगवान की उपासना करनी चाहिए।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।

स्वामी जी ने बतलाया की ज्ञानी कभी-कभी अपने ज्ञान के अहंकार के कारण परमात्मा से विचलित हो जाते हैं। लेकिन भक्ति से भगवान की उपासना करने वाला कभी भगवान से विचलित नहीं होता है। इसलिए संसार में रहकर गृहस्थ धर्म में सभी सत्य कर्मों को करते रहिए और उन कर्मों को भगवान में समर्पित कर दीजिए यही सरल भक्ति है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य को पवित्रता ,सरलता, जप - तप, ध्यान, मन - वाणी - शरीर से संयमता सभी  प्राणियों के प्रति दयालुता के साथ सदाचार धारण करके ,शास्त्र में बताए गए निषेध पदार्थो का त्याग कर भगवान की साधना ,आराधना करते हुए अपना जीवन यापन करना चाहिए।

मानव जीवन निर्वाह की सफलता कर्मो के बिना नहीं हो सकती है। इसलिए शास्त्र सम्मत कार्य करना चाहिए। आहार की शुद्धि से अंतःकरण की शुद्धि होती है और अंतःकरण की शुद्धि से स्थिर स्मृति होती है। स्मृति की स्थिरता से समस्त बंधनों से छुटकारा मिलता है इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि सभी वर्णों आश्रमों में रहकर आहार शुद्धि से भगवत भक्ति बढ़ती है। जीवन में अगर सदाचार लाना है तो सर्वप्रथम आहार को शुद्ध करना चाहिए।

सभी मनुष्यों से जाने अनजाने में जो पाप कर्म हो जाते हैं उसके लिए रोज पंच महायज्ञ करना चाहिए। सत् शास्त्रों का पाठ जिसे ऋषियज्ञ कहते हैं, हवन जो देव यज्ञ है ,अतिथियों की सेवा, श्राद्ध और तर्पण जिसे मातृ - पितृ यज्ञ कहते हैं ,एवं दिन दुखियों की  सेवा करना यह पांच महायज्ञ बतलाए गए हैं।  इन सात्विक कर्मों से भगवान प्रसन्न होते हैं।


रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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