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संस्कार ,संस्कृति ,सभ्यता, धर्म व राष्ट्र की रक्षा हम सबका कर्तव्य :- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी




दुबहर:- महर्षि भृगु की पावन तपोभूमि पर प्रवचन करते हुए भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि अच्छे सदाचारी ब्राम्हण को  भगवान का मुख बताया गया है। भगवान के मुख का पूजा करने का मतलब अग्नि का पूजन, रोम का पूजा का मतलब वृक्ष तथा नाड़ी का पूजा से नदियों का, स्वास  भगवान का वायु है।  भगवान के नेत्र के ध्यान का मतलब अंतरिक्ष का ध्यान कर लिया। भगवान के पैर के तलवे को ध्यान करते हुए यह मानना चाहिए कि यह पताल लोक है। पैर के अग्र भाग रसातल लोक, दोनो एडी का ध्यान का मतलब महातल का दर्शन, जांघो के ध्यान का मतलब महीतल लोक का दर्शन। दोनो पेंडुली का दर्शन परासर लोक की पूजा, घुटनों का दर्शन सुतल लोक का दर्शन, नाभी का दर्शन करने का मतलब हमने आकाश का, भगवान के वक्षस्थल का पूजा करने का मतलब स्वर्गलोक का दर्शन कर लिया। मुख का दर्शन करने का मतलब जन लोक, ललाट का दर्शन करने का मतलब तपोलोक का दर्शन, सिरोभाग का दर्शन सत् लोक है। भगवान की भुजा की पूजा करने का मतलब इन्द्र की, कान का ध्यान करने का मतलब दिशा का पूजन, इस प्रकार भगवान के अंगो का ध्यान करने से अलग अलग लोकों के परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है। यदि सारे दुनिया के तीर्थ व्रत देवी देवता की पूजा करने की क्षमता नही है तो केवल एक मात्र भगवान नारायण की पूजा करने से तैंतीस कोटि  देवताओं की सातों लोक की अराधना का फल प्राप्त होता है।

स्वामी जी ने बतलाया की संस्कार,सभ्यता , संस्कृति,राष्ट्र व धर्म की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है।


रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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