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संस्कार - संस्कृति की रक्षा व दिन दुखियों की सेवा मानवता कि पहचान :- जीयर स्वामी




दुबहर :- हमेशा अच्छे पुरुषों की संगति करना, हिंसा का त्याग करना,  एकांत सेवन, कामना का त्याग, यम नियम आदि का पालन करना, अपने कर्मों के प्रति सचेत रहना, सुख दुख में सम रहना ये सब ईश्वर को प्रसन्न करने के उपाय है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने  जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही। 

उन्होंने कहा कि मानवीय जीवन में अच्छे लोगों के पास धन संपत्ति आ जाती है तो वे इसका सदुपयोग समाज ,राष्ट्र ,दीन, दुखियों की सेवा के साथ-साथ संस्कार , संस्कृति की रक्षा में करते हैं। अगर नालायक लोगों के पास धन संपत्ति का आगमन हो जाता है तो वे इसके घमंड में आकर अनैतिक कार्य करने लगते हैं। यही सज्जन व नालायक में अंतर होता है।

स्वामी जी ने बतलाया की मनुष्य जब धरती पर जन्म लेता है तो वह तीन ऋणों से बंध जाता है पहला मातृ पितृ ऋण ,दूसरा ऋषि ऋण तीसरा देव ऋण इसलिए प्रत्येक संसारी पुरुष को अपने जीवन काल में इन  तीनो ऋणों को पूरा करना चाहिए । मातृ पितृ ऋण संतान को जन्म देकर उसे संस्कार देने से पूर्ण हो जाता है । दूसरा ऋषि ऋण संतों की सेवा साधना में सहयोग करने से मुक्ति मिलती है ,वही देव ऋण के लिए यज्ञ, तप आदि का आयोजन होते रहना चाहिए ।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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