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शिक्षा के साथ संस्कार का होना नितांत आवश्यक:- जीयर स्वामी

 


दुबहर:- सृष्टि के आदि में ब्रम्हा जी द्वारा मनु सतरूपा हुए। इन दोनो से गृहस्थ मर्यादा द्वारा तीन कन्या तथा दो पुत्र प्रकट हुए। पृथ्वी के प्रथम सम्राट मनु जी महाराज है और प्रथम राजरानी सतरूपा जी हैं। उस समय कोई भी न देश था, न कोई प्रदेश था, न कोई दूसरा राजा था। आकुति, देवहुति तथा प्रसूति। दो पुत्र हुए प्रियव्रत और उतानपाद, मनु जी महाराज ने मर्यादा से अपने पुत्र पुत्रियों को पालन पोषण करने लगे।  मनु महाराज व  सतरूपा जी ने अपने पुत्र पुत्रियों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दिए। माता पिता को जहां तक सामर्थ्य हो अपने संतान को शिक्षा दें और शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दें। आज हम शिक्षा तो दे रहें हैं परंतु संस्कार नही दे रहें हैं। जबकि शिक्षा और संस्कार  है। केवल शिक्षा हो संस्कार नही हो तो वह शिक्षा हमारे लिए विनाश का कारण बन जाती है। 

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कहीं।

स्वामी जी ने कहा कि  शिक्षा के साथ यदि संस्कार होता है तो वह शिक्षा हमारी साधना में परिणत हो जाती है। समाधान में परिणत हो जाती है। हमारे जीवन के लिए श्रृंगार बन जाती है। हमारे जीवन के लिए उपहार बन जाती है। यदि शिक्षा के साथ साथ संस्कार नही हो तो वह शिक्षा  हमारे लिए बोझ बन जाती कारण है। शिक्षा के साथ संस्कार नही दिया गया तो यह कैसी शिक्षा, किस प्रकार की शिक्षा। यदि शिक्षा के साथ संस्कार नही होगा तो करोड़ो दुशासन पैदा होगें हर घर की लज्जा लुट ली जाएगी।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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