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जाने कैसे शुरू हुई बृजेश सिंह व मुख्तार अंसारी की दुश्मनी, उसरी चट्टी कांड से लेकर भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या तक कि कहानी

 


लखनऊ : जाने कैसे शुरू हुई बृजेश सिंह व मुख्तार अंसारी की दुश्मनी, उसरी चट्टी कांड से लेकर भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या तक कि कहानी । बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. दोनों के बीच ऐसी दुश्मनी थी, जिसने पूरे पूर्वांचल को हिलाकर रख दिया और कई लोगों की जाने चली गई. पहली बार जेल जाने के दौरान बृजेश सिंह और गाजीपुर के पुरानी हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह की दोस्ती परवान चढ़ती है.

बृजेश की जिंदगी का मकसद फिलहाल मारना या फिर मरना हो गया था. तब एक तरफ साहिब सिंह का गैंग था, जिसका चहेता त्रिभुवन सिंह था. उसके पिता की जमीनी रंजिश के कारण हत्या कर दी जाती है और आरोप मकनू सिंह और उसके गैंग पर लगता है.

इसके बाद शुरू हुए गैंगवार में गाजीपुर से लेकर वाराणसी तक दोनों तरफ से इतनी जानें गई हैं, जिसे गिनने लगे तो बेशक गिनती भी गड़बड़ा जाए. जेल का दोस्ताना आगे बढ़ता है. गाजीपुर में एक तरफ मकनू सिंह गैंग, जिसमें साधु सिंह और मुख्तार अंसारी जैसे शार्प शूटर. वहीं दूसरी तरफ साहिब सिंह गैंग, जिसमें त्रिभुवन सिंह और बाद बृजेश सिंह जैसे शूटर.

गैंगस्टर बनने की दास्तां

त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह के आपराधिक उस्ताद साहिब सिंह की पेशी के दौरान हत्या कर दी जाती है, जिसका आरोप मकनू गैंग के साधु सिंह और मुख्तार अंसारी पर लगता है. यहीं से शुरू होता है शॉर्प शूटर रहे बृजेश सिंह के माफिया और गैंगस्टर बनने की दास्तां है. इधर मकनू सिंह की हत्या के बाद गैंग की कमान साधू सिंह के हाथ में आती है और दोनों गैंग के बीच हत्याओं का सिलसिला जारी रहता. 1988 में त्रिभुवन सिंह के भाई हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की भी हत्या हो जाती है. आरोप साधू सिंह और मुख्तार अंसारी पर लगता है. साहिब सिंह और राजेंद्र सिंह की हत्या से बौखलाए त्रिभुवन और बृजेश सिंह एक तरफ साधू सिंह को मारने की फिराक में लगे रहते हैं तो दूसरी तरफ बृजेश सिंह गैंग पर अपनी पकड़ मजबूत करने लगता है.

पूर्वांचल में बोलने लगी थी बृजेश सिंह की तूती

अब तक पूर्वांचल में बृजेश सिंह की तूती बोलने लगी थी. 1990 में ब्रिजेश सिंह फिल्मी अंदाज में पुलिस की वर्दी पहनकर गाजीपुर के जिला अस्पताल में ना सिर्फ साधू सिंह का कत्ल करता है बल्कि बगल में मौजूद कोतवाली के बावजूद फरार भी हो जाता है. साधु सिंह की मौत के बाद इस गैंग की कमान अब शॉर्प शूटर की भूमिका में रहे मुख्तार अंसारी के हाथों में आ जाती है और फिर पूर्वांचल में गैंगवार का सबसे रक्तरंजित अध्याय शुरू होता है, जिसके बाद आमने-सामने होते हैं मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह. यहीं से पैदा होते हैं पूर्वांचल के दो सबसे खूंखार डॉन और सियासत की अंडरवर्ल्ड के दो पोस्टर बॉय.

एक तरफ मुख्तार अंसारी का गैंग तो दूसरी तरफ बृजेश सिंह का गैंग. दोनों के बीच कोयला रेलवे के ठेके को लेकर वर्चस्व की जानलेवा जंग शुरू होती है. कहते हैं बृजेश ने लोहे के स्क्रैप से काले कारोबार की शुरुआत की और फिर कोयला शराब से लेकर जमीन, रियल स्टेट और रेत के धंधे में हाथ आजमाता चला गया. इस दौरान वाराणसी और गाजीपुर से शुरू हुए काले कारोबार को बलिया, भदोही, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा तक फैलाया. इस बीच 1990 के दशक में बृजेश सिंह ने धनबाद और झरिया का रुख किया और तब के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्य देव सिंह का शूटर बनकर उनके लिए भी काम करने लगा.

1998 में विधायक बना था मुख्तार अंसारी

वहीं 1998 में मुख्तार अंसारी मऊ विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर माफिया से माननीय विधायक बन जाता है. इस दौरान बृजेश सिंह अंडरग्राउंड होकर और कभी सामने आकर मुख्तार से दो-दो हाथ तो जरूर करता है, लेकिन तब तक मुख्तार अंसारी का प्रभाव लगातार बढ़ता रहता है. हालांकि 21वीं सदी आते-आते बृजेश सिंह को कुछ बड़े नेताओं का संरक्षण मिलता है तो फिर उसका खूंखार रूप सामने आता है. साल 2001 उत्तर प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार थी, लेकिन मोहम्मदाबाद में मानो मुख्तार अंसारी और उनके परिवार की ही सरकार चलती थी. आसपास के जिलों के सामने किसी को खोलने की इजाजत नहीं थी. वर्चस्व स्थापित करने के लिए गाजीपुर के मोहम्मदाबाद इलाके में ही मुख्तार की नाक के नीचे बृजेश सिंह ने उसरी चट्टी कांड कर डाला.

क्या था उसरी चट्टी कांड

साल 2001 में उसरी चट्टी कांड ने पूर्वांचल में गैंगवार की वह दास्तां लिखी जो अक्सर सिल्वर स्क्रीन पर भी दिखती है. कहते हैं माफिया बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी को मारने के लिए ऐसा प्लान बनाया था, जिसमें मुख्तार के बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी. गाजीपुर के उसरी चट्टी पर मुख्तार अंसारी अपने काफिले के साथ जा रहा था. तभी एक कार और एक ट्रक के जरिए मुख्तार को आगे और पीछे से घेरने की कोशिश हुई, लेकिन तभी रेलवे फाटक बंद हो जाने के कारण हमलावरों की एक गाड़ी पीछे रह गई. कहते हैं कि ट्रक आगे था और मुख्तार की गाड़ी उसके पीछे थे. उसी समय ट्रक का दरवाजा खुला और दो लड़के हाथ में अत्याधुनिक बंदूक लिए खड़े हो गए, जिसके बाद ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी, लेकिन मुख्तार अंसारी ने इस हमले में खुद को तो बचा लिया, लेकिन उसके गनर समेत गुर्गे मारे गए. वहीं इस हमले में बृजेश सिंह का भी एक गुर्गा मारा गया. साथ ही यह अफवाह उड़ गई कि बृजेश सिंह इस हमले में मारा गया, लेकिन जानकार बताते हैं कि बृजेश सिंह को गोली तो लगी, लेकिन वह बच निकला और फिर सालों तक अंडरग्राउंड होकर अपना काला साम्राज्य चलाता रहा.

पूर्वांचल के खूनी गैंगवार का एक और बड़ा समीकरण

इसी बीच 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद विधानसभा की तस्वीर बदल गई. 1985 से लगातार विधायक चुनकर चले आ रहे मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी यहां से चुनाव हार गए और भाजपा के कृष्णानंद राय चुनाव जीत गए. अब बृजेश सिंह को भी सीधे तौर पर राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा और फिर गाजीपुर से वाराणसी तक बृजेश सिंह और कृष्णनंद राय की जोड़ी मुख्तार अंसारी के लिए चुनौती बन गई. 2005 में मुख्तार अंसारी की साजिश से कृष्णानंद राय समेत छह लोगों की हत्या के बाद पलड़ा एक बार फिर मुख्तार की ओर झुका तो फिर झुकता ही चला गया जबकि दूसरी तरफ बृजेश सालों तक फरार रहा. 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या ने बृजेश सिंह को अंदर तक हिला दिया था. यह हमला बृजेश सिंह के लिए भी एक संदेश था. इसी को भांपते हुए बृजेश सिंह सालों तक फरार रहा.

19 नवंबर 2005 में अहमदाबाद में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय और उनके छह सहयोगियों की हत्या से पूरा पूर्वांचल दहल उठा था. गाजीपुर से लेकर वाराणसी और मऊ से लेकर आजमगढ़ तक कहीं तोड़फोड़ तो कहीं आगजनी का आलम था. कृष्ण राय की हत्या की साजिश का आरोप जेल में बंद बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर लगा था और इस हत्याकांड को अंजाम उसके शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी व दूसरे अपराधियों ने दिया. मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा चाक-चौबंद थी, तब उस वक्त दिवंगत कृष्णानंद राय के पैतृक गांव गोरखपुर में एक काली गाड़ी की बहुत चर्चा हुई. बताया जाता है कि उस काली गाड़ी में आने वाला शख्स कोई और नहीं बल्कि बृजेश सिंह था. खतरे के बावजूद वह कृष्णानंद राय के परिवार से मिलने आया था जबकि दुनिया जानती थी बृजेश सिंह की मौत हो चुकी है या फिर वह देश छोड़कर भाग चुका है.

पुलिस ने बृजेश सिंह पर रखा था 5 लाख का इनाम

पुलिस ने बृजेश सिंह पर 5 लाख का इनाम घोषित कर रखा था. इसी 2008 में बृजेश सिंह की बिल्कुल नाटकीय अंदाज में उड़ीसा से गिरफ्तारी हुई है. जानकार बताते हैं कि बृजेश सिंह ने सोची-समझी रणनीति के तहत खुद को गिरफ्तार कराया और उसमें तब बीजेपी के एक बड़े नेता ने मदद की, क्योंकि तब तक बृजेश सिंह के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह राजनीति में पांव पसार चुके थे और बृजेश सिंह के लिए इधर-उधर भागने से ज्यादा सुरक्षित जेल में रहना था है. 2008 में बृजेश सिंह की गिरफ्तारी के बाद जेल में रहते हुए उसे माफिया से माननीय बनाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया.बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह वाराणसी क्षेत्र से 1998 से ही भाजपा के एमएलसी थे और बृजेश की गिरफ्तारी हुई तब भी उनके भाई एमएलसी थे.

इसी बीच 2012 में वाराणसी जेल से ही बृजेश ने चंदौली की सैयदराजा विधानसभा सीट से भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार गया. बृजेश ने हार नहीं मानी 2016 में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा बसपा के टिकट पर एमएलसी बनी और फिर खुद बृजेश सिंह वाराणसी से भाजपा के समर्थन से निर्दलीय एमएलसी बने.



डेस्क

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