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भागवत कथा में कृष्ण-रुक्मिणी के विवाह का मंचन देख झूमने लगे श्रोता, लगने लगे जयकारे

 



वृन्दावन की गोपियों ने उद्धव जी के ज्ञान का अभिमान को किया खण्डित


बलिया। स्टेशन मालगोदाम पर स्थित शिव मंदिर के निकट चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की कथा के साथ ही विवाह की झांकी आयोजित की हुई। जैसे ही कृष्ण-रुक्मिणी की झांकी व्यासपीठ की ओर पहुंची श्रीकृष्ण के जयकारे लगने शुरू हो गए। पुष्प वर्षा होने लगी।

कथामर्मज्ञ कन्हैया पाण्डेय ने कृष्ण-रुक्मणि की रोचक कथा सुनाते बताया कि विदर्भ देश मे भीष्मक नाम के राजा थे। उनके पांच पुत्र रुक्म, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश रुक्ममाली और एक पुत्री थी जिसका नाम रुक्मणि था।  रुक्मणि श्रीकृष्ण को देखी नही थी। लेकिन उनकी कथा का श्रवण करती थी। सुनते सुनते वह मन में हीकृष्ण का वरण कर लिया था। जब  राजा भीष्मक ने पुत्री रुक्मणि के विवाह करने की चर्चा अपने पुत्रों से की तो उनके पुत्र ने बताया कि बहन रुक्मणि के विवाह की चिंता करने की जरूरत नही है। मैंने शिशुपाल सें उनकी शादी तय कर दिया हूँ। यह सुनकर रुक्मणि परेशान हो गई उसने यह बात अपने भाई की पत्नी को बताई।

कथामर्मज्ञ ने बताया कि शिशुपाल से विवाह तय होने से परेशान रुक्मणि ने

ब्राह्मण के हाथ से श्रीकृष्ण को पत्र भेजवाया। जिसमे उन्होंने अपने मन की सारी बाते और एक निर्धारित समय पर देवी माता पर रहने की बात लिखी थी। 

कथामर्मज्ञ पाण्डेय ने रुक्मिणी हरण की पूरी कथा श्रोताओं को सुनाई। रुक्मिणी हरण के साथ ही श्रीकृष्ण-रुक्मिणी की झांकी व्यासपीठ के पास पहुंची। यह देखकर कथा पंडाल श्रीकृष्ण के जयकारे से गूंज उठा। पुष्पों की बौछार होने लगी। कथा मंच पर जैसे ही दोनों ने एक दूसरे को माला पहनाई श्रोता झुमनें लगे।

उन्होंने वृंदावन की गोपियों को विरह की वेदना में वे वचैन वृन्दावन की गोपियों ने कैसे उद्धव जीके ज्ञान का अभिमान को खण्डित किया और कुबड़ी की कथा भी सुनाई।



By- Dhiraj Singh

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