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भगवान भाव के भूखे होते हैं, न कि धन, जाति, वैभव के

 


मनियर, बलिया : भगवान भाव के भूखे होते हैं धन जातियां वैभव के नहीं? उक्त बाते आचार्य पंडित धनंजय गर्ग जी ने कहीं वे श्रावण मास के शुभ अवसर पर श्री सतगुर ब्रह्म जी महराज( बुढ़वा बाबा )के हरियाली श्रृंगार उत्सव पर सप्त दिवसीय अभिषेकात्मक एवं संगीत मय श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार की रात में प्रवचन करते हुए आचार्य पंडित धनंजय गर्ग व्यास ने कहा कि भगवान भाव के भूखे होते हैं ।उन्होंने कहा कि सुखदेव जी परीक्षित से कहते हैं कि भगवान धन, जाति, वैभव के भूखे नहीं होते बल्कि वह भाव के भूखे होते हैं। भक्ति के लिए पांच बार स्नान करना जरूरी नहीं है । उन्होंने कहा कि कोल भील कितने बार स्नान करते थे ।शबरी कहां वेद पढी थी ।गजराज ने कौन सा मंत्र पढ़ा था ।गोपियां किस पाठशाला में पढ़ी थी । ये सभी लोग भाव से प्रभु को याद करते थे ।इसलिए प्रभु भी जब इन लोगों ने बुलाया चले आए। भगवान सिर्फ भाव के भूखे रहते हैं। भगवान ने दुर्योधन के घर मेवा मिश्री त्याग कर विदुर के घर जाकर साग खाये थे। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब भगवान श्री कृष्ण दुर्योधन के घर जा रहे थे तो उस भीड़ में विदुर दिखे ।विदुर ने मन में विचार किया कि क्या भगवान मेरे गरीब के घर भी कभी भोजन करेंगे ?भगवान श्री कृष्णा विदुर के मन के भाव को जान गए और कहे कि काका तुम क्या सोच रहे हो? चलो मैं आपके घर आ रहा हूं ।दुर्योधन के घर उनको भाव नहीं मिला तो उन्होंने उनके यहां के पकवान को त्याग कर विदुर के घर पहुंचे ।विदुर रानी उस समय स्नान कर रही थी ।उन्होंने जब दरवाजा बजाया तो भीगी कपड़ों में विदुर रानी आई और दरवाजा खोली। प्रभु भगवान को देखकर वह अपना शुद्ध बुद्ध भूल गई कि मैं भीगी कपड़े में हूं ।भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुरा कर कहा कि क्या देख रही हो काकी। मुझे अंदर नहीं बुलाओगी। तब विदुर रानी ने उन्हें घर के अंदर ले गई और बैठने के लिए जब कुछ नहीं था तो एक पीढ़ा जिसका एक सिरे का पाया निकल गया था उसी को साफ करके उस पर बैठाई और भगवान श्री कृष्ण ने भाव से उनके घर साग भात खाए।



प्रदीप कुमार तिवारी

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