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सरकार करे नजरें इनायत तो बलिया वासियों के लिए वरदान साबित होगा सुरहाताल'



# पर्यटन दिवस पर विशेष


  रामगढ़, बलिया। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े प्राकृतिक ताल सुरहाताल को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने हेतु अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंट वार्ता में विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की।

 उन्होंने कहा कि सुरहाताल , जिसे प्राकृतिक ताल के रूप में उत्तर- प्रदेश का सबसे बड़ा ताल माना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार सुरहा ताल का नाम नेपाल नरेश राजा सुरथ के नाम पर पड़ा माना जाता है। ऐसा आख्यान मिलता है कि एक बार राजा सूरथ कोढ़ी हो गये थे और उनका राज- पाट भी छिन गया था। इस स्थिति में वे अपना राज- पाट छोड़कर भ्रमण के लिए निकल गये और भ्रमण करते- करते जब वो सुरहा ताल क्षेत्र में पहुँचे तो यह क्षेत्र उन्हें बहुत मनोरम लगा। यहाँ की प्राक.तिक छटा से सम्मोहित होकर वो सुरहाताल के किनारे निवास करने ले और प्रतिदिन सुरहाताल में स्नान करने लगे और अपने शरीर पर सुरहाताल की तलहटी की मिट्टी की लेप लगाने लगे। कुछ ही दिनों पश्चात राजा सुरथ के शरीर का कोढ़ समाप्त हो गया, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने सुरहाताल के चतुर्दिक अनेक देवी- देवताओं की स्थापना की। तभी से सुरहाताल का महत्व उजागर हुआ।

वैसे सुरहा ताल की उत्पति के सम्बन्ध में सही तथ्य यह है कि यह ताल गंगा नदी का छाड़न है।प्राचीन काल में गंगा नदी के मार्ग परिवर्तन के कारण एक छाड़न के रूप में विद्यमान रह गया, जो राजा सूरथ के नाम पर सुरथ ताल पड़ा जो बाद में अपभ्रंश होकर सुरहाताल हो गया।सुरहाताल का औसत क्षेत्रफल 24.6 वर्ग किमी० है। किन्तु बरसात के दिनों में इसका जल अधिग्रण क्षेत्र में विसँतार हो जाने से क्षेत्रफल बढ़कर 34.32 वर्ग किमी० या कभी- कभी 42.32 वर्ग किमी० तक भी हो जाता है। ग्रीष्म ऋतु में जल अधिग्रहण क्षेत्र कम हो जाने से इसका क्षेत्रफल मात्र 21 वर्ग किमी० रह जाता है। यह ताल लगभग 4.5 किमी० की लम्बाई में एवं 3.7 किमी० की चोड़ाई में है। वैसे सचरहा ताल की आकृति गोलाकार होने के कारण इसके लम्बाई एवं चौड़ाई का सही- सही मापन नहीं हो पाता है।

 सुरहाताल जैव विविधता का भण्डार है, जो इस क्षेत्र के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाता है। इस ताल में जलीव जीवों एवं जलीय वनस्पतियों की भरमार है। अनेक प्रकार की उत्तम् किस्म की मछलियों की उपलब्धता इस ताल की विशेषता है। अनेक प्रकार की रंग- बिरंगी पक्षियों की सैरगाह है यह सुरहाताल ।

जाड़े के प्रारम्भ में सितम्बर माह से ही साईबेरियाई  रंग - बिरंगी मनोहारी पक्षियां आना प्रारम्भ कर देती हैं और पूरे शीत ऋतु में यहीं रहकर अपनी प्रजनन क्रिया सम्पन्न करती हैं और पुनः ग्रीष्म ऋतु प्रारम्भ होते ही अपने स्वदेश वापस हो जाती हैं। ये पक्षियाँ मनोरंजन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। किन्तु अफसोस इन पक्षियों का अनैतिक तरीके से शिकार होने लगा है, जिससे ये मनोहारी पक्षियाँ अब धीरे- धीरे आना कम कर रही हैं, जो न केवल सुरहाताल क्षेत्र के लिए, बल्कि बलिया के लिए दुर्भाग्य साबित होगा। कारण कि जैव विविधता को कायम रखने में भी ये पक्षियाँ विशेष भूमिका निभाती हैं।

  सुरहाताल में अनेक प्रकार की जलीय औषधीय एवं आहारीय वनस्पतियों की भरमार है। इस ताल में लाल एवं सफेद कमल पुष्प बहुतायत मात्रा में मिलता है  जिसका अनेक धार्मिक, आध्यात्मिक, औषधीय एवं आहार पोषण का महत्व है। सुरहा ताल में सिंघाड़े की भी खेतों बहुतायत होती है जो अपनी पौष्टिकता एवं स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।

सुरहाताल में एक विशेष प्रकार के धान की खेती भी होती है, जिसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जितना भी जल बढ़ता है इस धान का पौधा जल के ऊपर ही रहता है । इसे बोरो धान कहा जाता है। इस धान का चावल अत्यन्त ही मीठा एवं पौष्टिक होता है।

रिपोर्ट रविन्द्र नाथ मिश्र

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