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कैसे गुलजार हो ददरी मेला का आंगन जब.....!


बलिया। प्रशासनिक लापरवाही के कारण ऐतिहासिक ददरी मेला मुफलिसी का शिकार हो गया है। यहां विगत तीन दिनों से बंद पड़े चरखी और झूलों ने मेले की रौनक में मानों ग्रहण लगा दिया है, जिसका खामियाजा दूर-दराज से आए व्यापारियों के साथ ही जनपद के लाखों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। प्रशासनिक मंजूरी न मिलने के कारण जहां रोजाना झूला और चरखी संचालकों का करीब दो से ढाई लाख रुपए नुकसान हो रहा है, वहीं चरखी और झूला ना लगने के कारण मेले में आने वाली भी की तादात में काफी कमी हो गई है। बताते दें कि ऐतिहासिक ददरी मेला को लेकर नगर पालिका और जिला प्रशासन द्वारा महीनों पहले से तैयारियां कर ली जाती हैं। करीब एक पखवाड़े तक पशु मेला का संचालन करने के बाद कार्तिक स्नान के दिन से ददरी मेला का मीना बाजार पूरी तरह गुलजार हो जाता है, जहां जनपद के साथ ही अन्य समीपवर्ती जिलों से लाखों लोगों की भीड़ मेले का आनंद लेने आती है। मेला में लोगों के मनोरंजन का एक मात्र साधन झूला, चरखी, मौत का कुआं और सर्कस रहता है। लेकिन दुर्भाग्यवश इस वर्ष जहां ददरी मेला में सर्कस का कहीं अता पता ही नहीं है, वहीं व्यापारियों द्वारा लगाई गई। चरखी और झूले शो पीस बने हुए हैं। इस संदर्भ में रांची से झूला लगाने आए व्यापारी रियाजुद्दीन उर्फ राजू ने बताया कि मेला में लगभर आधा दर्जन बड़ी चरखियों के साथ ब्रेक डांस और अन्य प्रकार के करीब ढाई दर्जन झूले लगाए गए है। उन्होंने बताया कि अपनी बर्षों पुरानी परम्परा के अनुसार नगर पालिका प्रशासन ने मेला में झूला लगाने के लिए जमीन आवंटित की, जिसपर कारीगरों द्वारा युध्दस्तर पर कार्य करके झूला- चरखी को खड़ा किया गया। इस दौरान पीडब्ल्यूडी विभाग ने भी चरखी और झूला लगाने के लिए अपनी रजामंदी दे दी, लेकिन एनओसी के अभाव में जिला प्रशासन ने चरखी और झूलों पर रोक लगा दी। व्यापारियों का कहना है कि यदि जमीन दलदली थी, तो नगर पालिका प्रशासन ने इसे झूला के लिए आवंटित क्यों किया और पीडब्ल्यूडी विभाग ने अपनी रजामंदी क्यों जताई।                                           By-Report: Ajit Ojha

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