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जल संसाधन दिवस 10 अप्रैल पर विशेष : विकास की गति को अवरूद्ध कर देगा घटता जल संसाधन : डा० गणेश पाठक


     
बलिया : क्षिति, जल, पावक, गगन ,समीर इन पाँच मूलभूत तत्वों में जल सृष्टि का आदि तत्व है जो मानव के लिए प्रकृति प्रदत्त वरदान है। जल केवल प्राणियों के जीवन को धारण नहीं करता, बल्कि स्वयं जीवन प्राण है। जन्म से लेकर मृत्यु तक जल ही एक ऐसा तत्व है जो मानव के प्रत्येक कार्यों में प्रयोग किया जाता है और न केवल आधुनिक विकास ,बल्कि सृष्टि के विकास का आधार बनता है। जल आँक्सीजन एवं हाइड्रोजन का यौगिक है। पौधों में 50 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक एवं मानव शरीर में 57 प्रतिशत से 65 प्रतिशत भाग जल विद्यमान होता है। इसी लिए जल को जीवन प्राण कहा जाता है।
        यह जल हमें विभिन्न जल स्रोतों से प्राप्त होता है। विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध जल जो मानव के लिए उपयोगी होता है उसे "जल संसाधन" कहा जाता है। पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल ( 51.0 करोड़ वर्ग किमी० ) के लगभग 71 प्रतिशत ( 36.0 करोड़ वर्ग किमी० ) भाग पर जल का विस्तार है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व के कुल जल संसाधन का 97.2 प्रतिशत समुद्री जल के रूपमें, 2.2 प्रतिशत हिमनदियों में बर्फ के रूपमें और 0.6 प्रतिशत भूमिगत एवं धरातल पर मीठा जल के रूप में उपलब्ध है। इस प्रकार पृथ्वी पर प्राप्त कुल जल का 0.6 प्रतिशत भाग ही मानव प्रयोग हेतु मीठे जल के रूप में प्राप्य है जो हमें धरातलीय जल एवं भूमिगत जल के रूप में मिलता है। इनमें से 0.59 प्रतिशत भूमिगत जल है और मात्र 0.1 प्रतिशत जल ही धरातलीय जल है।इस तरह भूमिगत जल के रूपमें हमें 97.74 प्रतिशत मीठा जल पृथ्वी की निचली परतों से मिलता है, जबकि शेष 2.26 प्रतिशत सतही जल के रूप में मिलता है।  इस सतही जल का 1.47, 0.78 एवं 0.01 प्रतिशत जल क्रमशः झीलों, मृदा नमी एवं नदियों से मिलता है। विश्व में होने वाली जलापूर्ति का लगभग 95 प्रतिशत भूमिगत जल से एवं 5 प्रतिशत धरातलीय जल से होती है।
      अपने देश नदी प्रणाली का औसत जल प्रवाह 1869  बिलियन क्यूबिक मीटर के लगभग है, जिनमें से 690 बिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल ( कुल सतही जल का मात्र 32 प्रतशित) ही उपयोग में लाए जाने वाला है।
      किन्तु मानव की उपभोगवादी प्रवृत्ति , विलासितापूर्ण जीवन एवं अनियंत्रित उपयोग के चलते न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में सल संसाधन के स्रोत  सूखते जा रहे है जिससे दिन प्रति दिन जल की उपलब्धता भी कम होती जा रही है। विश्व में मात्र 75 प्रतिशत शहरी एवं 40 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में ही स्वच्छ जल उपलब्ध है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भारत को जल की गुणवत्ता एवं उपलब्धता के मानकों के आधार पर 120 वाँ स्थान प्रदान किया गया है जो अति शोचनीय है। अपने देश में 38 प्रतिशत नगरों में एवं 82 प्रतिशत गाँवों में जल को शुद्ध करने की व्यवस्था नहीं है। नीरी( नागपुर) के अनुसार भारत में उपलब्ध कुल जल का लगभग 70 प्रतिशत अंश दूषित हो चुका है। राष्ट्रीय जल संसाधन आयोग के अनुसार सन् 2010 में भारत में जल की कुल आवश्यकता 700 घन किमी० थी जो 2025 में बढ़कर 850 घन किमी० एवं 2050 तक 1200 घन किलोमीटर तक हो जायेगी। जब कि ठी इसके विपरीत भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता जो 2001 में 1820 क्यूबिक मीटर थी , वह 2011, 2025 एवं 2050 में बढ़कर क्रमशः 1545, 1349 एवं 1140 क्यूबिक मीटर हो जायेगी। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक तरफ जहाँ जल की आवश्यकता बढ़ती जा रही है , वहीं दूसरी तरफ प्रत व्यक्ति जल की उपलब्धता कम होती जा रही है जो विशेष चिन्ता का विषय है।
        बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में जल उपलब्धता एवं उपयोग की स्थिति ठीक नहीं है। अंधाधुन्ध सिंचाई के वजह से एक तरफ जहाँ भूमिगत जल स्तर क्रमशः नीचे खिसकता जा रहा है, वहीं धरातलीय जर स्रोत भी सूखते जा रहे हैं। अनेक क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु में पानी के लिए हाहाकार मच जाता है और स्थिति अत्यन्त खराब हो जाती है।अधिकांश ताल तलैया सुख गये हैं एवं नदियों का जल संकुचित ह़ो गया है। 
       इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि जल के उपयोग की यही स्थिति बरकरार रही तो वह दिन दूर नहीं जब जल पर आधारित हमारी सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का विकास अवरूद्ध हो जायेगा और स्नान करने को कोन कहे , हमें पीने के लिए भी जल उपलब्ध नहीं हो पायेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम येन- केन प्रकारेण जल को बचाने का प्रया करें, जिसके लिए बचत प्रक्रिया को अपनाना , दीर्घकालीन उपयोग, बर्बादी पर रोक, विकल्प की खोज, अनियंत्रित उपयोग पर रोक एवं जनजागरूकता आवश्यक है।



रिपोर्ट : धीरज सिंह

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