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जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर उतर दिशा में सरजू नदी के किनारे एैतिहासीक है महर्षि परशुराम जी प्राचीन मन्दिर



मनियर, बलिया । जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर उतर दिशा में सरजू नदी के तट पर बसा परशुराम नगरी के नाम से विख्यात मनियर पौराणिक रुप से अपना एक समृद्ध इतिहास समेटे हुए है। क्षेत्र के वरिष्ठ धर्माचार्य व प्रकांड विद्वान सुमन जी उपाध्याय के अनुसार कस्बा के बीचोंबीच बना प्राचीन परशुराम मन्दिर लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व सन् 1560 में मनियर स्थित भगवान परशुराम  के मंदिर का जीर्णोद्धार श्री नाथ राय द्वारा किया गया था। उनके अनुसार इस अति प्राचीन मंदिर का निर्माण कब किया गया। इस का जिक्र कही नहीं है बताया जाता है कि सरजू नदी के किनारे एकातं होने के कारण भगवान परशुराम की तपोभूमि मनियर रही है। यहां भगवान परशुराम तप किया करते थे। उस समय मनियर घना जंगल था जिसमें मणिधर सर्प रहा करते थे जिसके कारण इसका नाम मणिवर पड़ा। बाद में मुनियों के तप किए जाने के कारण इसका नाम मुनिवर पड़ा जिसका वर्तमान नाम मनियर है। कहा जाता है कि मनियर में घना जंगल होने के कारण अन्य ऋषियों के साथ-साथ भगवान परशुराम भी तप किया करते थे। वह बिहार जनपद के सारण ( छपरा )से दोहरीघाट तक घाघरा नदी के किनारे विचरण भी किया करते थे। जब वह तपस्या में लीन होते थे तभी एक बहेरा कुअर नाम का राक्षस ताल ठोंक कर घोर गर्जना करता था जिससे भगवान परशुराम की तप में विघ्न पड़ता था ।एक दिन परशुराम जी बहेरा राक्षस को मारने के लिए संकल्पित होकर चल दिए। उनकी भेंट मऊ जनपद के रतोई नामक स्थान पर हुई। दोनों लोगों मे तय हुआ कि जो कोई भी इस युद्ध में मारा जायेगा उसको सरजू नदी में जल प्रवाह किया जायेगा। दोनों लोगों के बीच भयंकर युद्ध हुआ जिसके कारण वहां एक बड़ा रतोई का तालाब बन गया जो आज भी विद्यमान बताया जाता है । दोनों लोगों के बीच शर्त रखा गया कि इस युद्ध में जो जीवित बचेगा वह मरे हुए को ले जाकर घाघरा नदी में जल प्रवाह करेगा। भगवान परशुराम ने बहेरा राक्षस को मारने के बाद उसे घसीटते हुए मनियर ले आकर सरजू नदी में जल प्रवाह किए। जिस रास्ते से उसे लेकर आए थे वहां एक नाला का रूप लेता गया जो आज भी मंदिर के पीछे विद्यमान है और बहेरा नाले के नाम से भी जाना जाता है।



रिपोर्ट : राममिलन तिवारी

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