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बंबई से बनारस पैदल आने वालें प्रवासी श्रमिकों के दर्द की दास्ताँ


मुंबई.  बंबई से बनारस के सफर पर निकले लाखों लोग उन्हीं रास्तों पर अपने-अपने गांवों की ओर चल पड़े हैं। जिनका उन्होंने कभी सपने में भी दीदार नहीं किया था.नंगे पैर, पैदल, साइकिल, ट्रकों पर और गाड़ियों में भरकर, हर हाल में वे घर जाना चाहते हैं. पेश है उन प्रवासी श्रमिकों के घर वापसी की लाइव रिपोर्ट,  जिसमें तमाम दुश्वारियां और परेशानियों की बाधा को पार कर हर हाल में वो घर पहुंचने के लिए सतत संघर्ष कर रहे हैं.

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश बॉर्डर का इलाका। जिला सेंधवा, मप्र का बड़ी बिजासन माता मंदिर परिसर। भीड़ ऐसी की शायद ही किसी पूजा या त्यौहार पर भी इस मंदिर में कभी हुई होगी। ये भीड़ है
पूरे महाराष्ट्र से लाए गए यूपी और बिहार के लोगों की।


महाराष्ट्र और मप्र बॉर्डर पर ये उस जगह की डरावनी तस्वीर है, जहां यूपी बिहार के लोगों को बसों में भरकर लाया
जा रहा है। संख्या लगभग 4-6 हजार के बीच होगी।

रात के 9 बजे तक महाराष्ट्र सरकार ने अपने परिवहन विभाग की एसटी बसों से लगभग 4-6 हजार लोगों को मंदिर परिसर में लावारिस छोड़ दिया। बसों का आना उसके बाद भी जारी था। यहां न तो कोई यूपी-बिहार का अधिकारी था और न ही महाराष्ट्र सरकार का नुमाइंदा। यहां लोहे की चादर वाले एक बड़े पंडाल में सभी मजदूरों को छोड़ा जा रहा है, जहां सोशल डिस्टेंसिंग नामुमकिन है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दो गज दूरी बनाए रखने की अपील कर रहे हैं, पर बड़ी बिजासन माता मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में लोग एक-दूसरे से सटकर बैठे हुए थे। जो कई दिनों से सौ-सौ किमी पैदल चले हैं, वो वहीं थककर लुढ़क गए। वहां न तो महिलाओं के लिए टायलेट है न ही साफ पानी। पूरी रात मजदूर बस यही पूछ रहे थे, ‘साहब, यहां से यूपी-बिहार जाए बिदा बस मिली? हे साहब, इ बसिया कब मिली हो?’



सुविधा के नाम पर यहां उप्र या बिहार लिखे बोर्ड हैं और एक छोटे से इलाके में हजारों लोगों को बैठाया गया है, कुछ छोटे
बच्चे भी हैं।

बांद्रा से 25 लोगों का ग्रुप भी उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें एसटी बस से यहां छोड़ा गया। वे अब आगे वे कैसे जाएंगे, नहीं जानते? पुणे में रहने वाले राजेश को गोरखपुर जाना है। चूंकि परिवहन विभाग ने उन्हें सेंधवा, मध्य प्रदेश तक लाने का एक पैसा चार्ज नहीं किया। लिहाजा उन्हें लगता है कि यह सुविधा उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री की ओर से मिली है। परंतु मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर आकर उन्हें समझ में आया कि असल में यहां तक उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने छुड़वाया है और आगे मध्य प्रदेश सरकार की ओर से व्यवस्था की जाएगी।


लोग अपने राज्य के बोर्ड के पास जमा हो गए। किसी को नहीं पता कि आगे जाने की व्यवस्था कैसे होगी।

रत्नागिरी जिले में पेंटिंग का काम करने वाले राम नारायण बताते हैं कि वे लोग ट्रक से सुल्तानपुर जिले के लिए रवाना हुए थे। बीच में पुलिस वालों ने ट्रक रोककर बस में सवार कर यहां भेज दिया। शाम 6 बजे वे मंदिर पहुंच गए थे।



महाराष्ट्र परिवहन विभाग की ‘लालपरी’ कही जाने वाली एसटी बसों से प्रवासी मजदूरों को जबरदस्ती भरकर मध्य प्रदेश के बड़ी
बिजासन माता मंदिर परिसर में लाकर छोड़ा जा रहा है।

ठाणे, मुंब्रा के रहने वाले रफी अहमद रात 8.30 बसे महाराष्ट्र परिवहन विभाग की बस से सेंधवा पहुंच गए। उन्हें आगे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर जिले तक जाना है, क्योंकि वहीं उनका भी घर है। वे नाराजगी जताते हैं कि यहां इस वक्त महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और यूपी तीनों राज्यों का एक भी अधिकारी नहीं है।



राज्यों का कोई भी अधिकारी वहां मौजूद नहीं है। न महाराष्ट्र और न ही मप्र और यूपी-बिहार का। लोगों को लावारिस छोड़ दिया गया है।

बोरीवली (पूर्व), टाटा पॉवर हाउस इलाके से बिहार के छपरा जिला जाने के लिए यहां पहुंचाए गए अमरजीत कुमार का 24 लोगों का ग्रुप है। वे कहते हैं कि बिहार सरकार ने हम बिहारीमजदूरों को अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया है। साभार- डीबी



डेस्क

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