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कोरोना से सबक : शाकाहार से संभव है महामारियों से बचाव



नई दिल्ली. 2003 में सार्स फैला। 2009 में मर्स और एच1एन1 स्वाइन फ्लू। फिर इबोला भी लौटकर आया। जीका वायरस भी लौटा। एचआईवी भी अब तक सबसे बड़ा हेल्थ इशू बना हुआ है। अब कोरोनावायरस आ गया। ये कुछ ऐसी खतरनाक बीमारियां रहीं हैं, जो पिछले 15-20 सालों में दुनियाभर में फैलीं। इन सब बीमारियों के फैलने का एक ही सोर्स था और वो था जानवर।
डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया में हर साल 1 अरब से ज्यादा लोग जानवरों से फैली बीमारियों से बीमार होते हैं। इनमें लाखों की तो मौत भी हो जाती है। ये बीमारियां जानवरों को खाने से या जानवरों को बंदी बनाकर रखने से फैलती हैं। डब्ल्यूचओ का कहना है कि पिछले तीन दशक में इंसानों में 30 तरह के नए रोग आए हैं और इनमें से 70% से ज्यादा रोग जानवरों के जरिए ही इंसानों में आए।
इतना ही नहीं, वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है कि कोरोनावायरस आखिरी महामारी नहीं है, जिसका हम सामना कर रहे हैं। भविष्य में हमें और भी महामारियों का सामना करना पड़ेगा, इसलिए हमें जानवरों में फैलने वाली बीमारियों को करीब से देखने की जरूरत है।
क्या नॉन वेजिटेरियन खाने से फैल रही हैं बीमारियां?
इस बात का कोई ठोस सबूत तो नहीं है। लेकिन, 2013 में यूनाइटेड नेशंस की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि लाइवस्टॉक हेल्थ हमारी ग्लोबल हेल्थ चेन की सबसे कमजोर कड़ी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 90% से ज्यादा मांस फैक्ट्री फार्म से आता है। इन फार्म्स में जानवरों को ठूंस-ठूंसकर रखा जाता है और यहां साफ-सफाई का भी ध्यान नहीं रखा जाता। इस वजह से वायरल बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

जैसे- 2003 में सार्स बीमारी चमगादड़ या सिवेट कैट से फैली। 2009 में स्वाइन फ्लू सुअरों से आया। मर्स बीमारी ऊंट से आई। इबोला चमगादड़ से आया। जीका वायरस भी बंदरों से इंसान में आया। एचआईवी, जो अभी भी सबसे बड़ा हेल्थ इशू है, वो अफ्रीका के जंगली जानवरों से फैला।

कोरोना को लेकर भी माना जा रहा है कि ये चमगादड़ से या फिर पैंगोलिन से फैला होगा। हालांकि, अभी तक इस बात की सटीक जानकारी नहीं मिल सकी है कि ये किससे फैला?
जानवरों से फैलने वाले संक्रमण हमारे लिए क्यों मायने रखता है?
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, जानवरों के जरिए फैलने वाले संक्रमण का पता लगाना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में ये संक्रमण कम समय में ही ज्यादा देशों और ज्यादा लोगों में फैल जाता है। ऐसे वायरस की वजह से लोगों की मौतें भी ज्यादा होती हैं। हालांकि, ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि ऐसे वायरस या संक्रमण से निपटने की कोई तैयारी नहीं होती। इनका कोई असरदार इलाज भी नहीं मिल पाता और न ही कोई वैक्सीन बन पाती है।

आजकल दुनिया एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। इस वजह से अगर किसी एक देश में किसी जानवर से कोई संक्रमण फैलता है, तो उसके दूसरे देश में भी फैलने के चांस बढ़ जाते हैं। हमारे लिए इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि ये बेवजह मौतों का कारण भी बनता है।

इन सबके अलावा इससे दुनिया को आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है। क्योंकि ऐसे वायरस फैलने से न सिर्फ कारोबार बल्कि टूरिज्म इंडस्ट्री पर भी असर पड़ता है।

उदाहरण के लिए 2003 में जब सार्स बीमारी फैली तो इससे वर्ल्ड इकोनॉमी को 50 अरब डॉलर (आज के हिसाब से 3.80 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान झेलना पड़ा था। इसका दूसरा उदाहरण ये भी है कि जब 2016 में केन्या में आरवीफ (रिफ्ट वैली फीवर) फैला था, तब वहां के हर परिवार को 500 डॉलर (आज के हिसाब से 38 हजार रुपए) का खर्च उठाना पड़ा था।

तो क्या वेजिटेरियन बनने से बीमारियों से बचा जा सकता है?
कोरोनावायरस महामारी फैलने के बाद डब्ल्यूएचओ ने एनिमल मार्केट जाने और जानवरों से सीधे संपर्क में आने से बचने की हिदायत जारी की थी। इसके बाद जानवरों पर काम करने वाली संस्था पेटा ने भी एक ब्लॉग के जरिए सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन इतना जरूर कहा था कि वेजिटेरियन अपनाकर न सिर्फ हेल्दी रहा जा सकता है बल्कि बीमारियों से भी बचा जा सकता है।

क्या होगा अगर सभी वेजिटेरियन बन जाएं?
2016 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की एक स्टडी आई थी। इसमें कहा गया था कि अगर दुनिया की सारी आबादी मांस छोड़कर सिर्फ शाकाहार खाने लग जाए तो 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 70% तक की कमी आ सकती है।

अंदाजन दुनिया में 12 अरब एकड़ जमीन खेती और उससे जुड़े काम में इस्तेमाल होती है। इसमें से भी 68% जमीन जानवरों के लिए इस्तेमाल होती है। अगर सब लोग वेजिटेरियन बन जाएं तो 80% जमीन जानवरों और जंगलों के लिए इस्तेमाल में लाई जाएगी।

इससे कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा कम होगी और क्लाइमेट चेंज से निपटने में मदद मिलेगी। बाकी बची हुई 20% जमीन का इस्तेमाल खेती के लिए हो सकेगा। जबकि, अभी जितनी जमीन पर खेती होती है, उसके एक-तिहाई हिस्से पर जानवरों के लिए चारा उगाया जाता है।
तब भी एक सवाल, वेजिटेरियन बने तो क्या खाने के लिए हमारे पास अनाज होगा?
तो इसका जवाब है "हां"। पेटा का कहना है कि खाने के लिए जानवरों को पालना ज्यादा नुकसानदायक है क्योंकि जानवर बड़ी मात्रा में अनाज खाते हैं और इसके बदले में उनसे बेहद ही कम मांस, डेयरी प्रोडक्ट या अंडे मिलते हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि किसी जानवर से एक किलो मांस लेने के लिए उसे 10 किलो अनाज खिलाना चाहिए।

दुनियाभर में अकेले मवेशी ही 8.70 अरब लोगों की कैलोरी की जरूरत के बराबर जितना भोजन खाते हैं, जो धरती पर मौजूद इंसानी आबादी से भी कहीं ज्यादा है।

वर्ल्डवॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार, हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां हर 6 में से 1 व्यक्ति हर रोज भूखा रहता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मांस के उत्पादन में अनाज का दुरुपयोग होता है। जबकि, इंसान अगर सीधे अनाज खाए तो उसका सही ढंग से उपयोग होता है।

वैज्ञानिकों ने हाल ही में चेताया भी है कि हम आने वाले समय में अनाज के भयंकर अभाव का सामना कर सकते हैं क्योंकि ज्यादातर अनाज लोगों के बजाय जानवरों को खिलाया जा रहा है।

(सोर्स : पेटा, डब्ल्यूएचओ, सीडीसी, नेशनल एकेडमी साइंस, visualcapitalist)


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