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जाने कब है: पुत्र की लम्बी आयु की कामना को पूर्ण करने वाला जीवित्पुत्रिका व्रत




रतसर (बलिया) अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जिउतिया व्रत किया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेण्डर के मुताविक इस साल यह व्रत 10 सितम्बर गुरुवार को मनाया जाएगा। हर साल यह व्रत दीपावली के 40 दिन पहले आता है लेकिन इस साल अधिक मास लगने के कारण यह व्रत दीपावली से 65 दिन पहले आ गया है। मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन जो स्त्रियां अपनी संतान की लम्बी आयु और स्वास्थ्य की कामना से निर्जला व्रत करती है, ईश्वर की कृपा से उनकी संतान की लम्बी उम्र होती है। इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा है जब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया था तब से स्त्रियां अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्रीकृष्ण व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते है। अश्विनी मास की अष्टमी तिथि को मनाए जाने वाला पर्व 3 दिनों तक चलता है। व्रत के एक दिन पहले नहाय-खाय मनाया जाता है। अष्टमी तिथि लगते ही स्त्रियां निर्जला व्रत शुरू कर देती है। अष्टमी तिथि को पूरा दिन रात विना अन्न-जल ग्रहण के रहती है फिर अगले दिन यानि नवमी तिथि लगने पर जिउतिया व्रत का पारण किया जाता है। व्रत खोलने से पहले दान- दक्षिणा निकाली जाती है फिर उसके बाद ही व्रती स्त्री कुछ खा या पी सकती है।
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इस बार अश्विनी कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 9 सितम्बर की रात 9 बजकर 46 मिनट पर प्रारम्भ होगी और 10 सितम्बर की रात 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। 10 सितम्बर को अष्टमी में चन्द्रोदय का अभाव है। इसी दिन जिउतिया व्रत मनाया जाएगा। व्रत से एक दिन पहले सप्तमी 9 सितम्बर को रात महिलाएं नहाय-खाय करेगी। गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद मडुआ की रोटी, नोनी का साग आदि का सेवन करना चाहिए। व्रती स्त्रियों को स्नान- भोजन के बाद पितरों की पूजा करनी चाहिए। जिउतिया व्रत का पारण करने का शुभ समय 11 सितम्बर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक रहेगा।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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