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कोरोना संक्रमण काल ने तोड़ दी निजी स्कूलों के शिक्षकों की कमर, कौड़ी-कौड़ी को मोहताज गुरुजी




रतसर (बलिया) छः माह से स्कूल बन्द है । निजी विद्यालय में पढ रहे बच्चों के अभिभावक फीस नहीं जमा कर पा रहे है। आमदनी शून्य है तो विद्यालय प्रबन्ध तन्त्र शिक्षकों को वेतन का भुगतान भी नही कर पा रहा है। सम्मान जनक पेशे में होने से शिक्षक दहाड़ी मजदूरी भी नही कर सकते। इस प्रकार निजी विद्यालयों में अध्यापन कर परिवार का भरण पोषण करने वाले गुरुजी की कोरोना ने आर्थिक कमर तोड़ दी है। कोरोना वायरस को खत्म करने के उद्देश्य से प्रधानमन्त्री मोदी जी ने मार्च माह के अंतिम सप्ताह से पूरे देश में लाक डाउन कर दिया।तभी से ही सरकारी और निजी स्कूल-कालेज बंद है। सरकार की पहल पर बच्चों को आनलाइन शिक्षा दी जा रही है। बात निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले प्राइवेट शिक्षकों की करे तो ग्रामीण क्षेत्र में इन शिक्षकों को एक दो हजार रुपए प्रतिमाह स्कूल से मिलता है। शहरी क्षेत्र के बड़े स्कूल जिनमें प्रति बच्चे की वार्षिक फीस 25 से 35 हजार होती है उन्हें छोड़कर अन्य स्कूलों में प्राइवेट शिक्षकों को तीन हजार से कम वेतन पर ही रखा जाता है।बताते है कि मार्च माह में स्कूल बन्द होने के बाद निजी स्कूल संचालकों ने शिक्षकों से किनारा कर लिया इससे वह घर पर खाली बैठे है। काम बन्द होने से उन्हें आर्थिक समस्या से जुझना पड़ रहा है। सरकार इन शिक्षकों की तरफ ध्यान नही दे रही है। लाक डाउन में प्राइवेट शिक्षकों के हालात कैसे रहे इसको लेकर कुछ शिक्षकों से बात की I शिक्षक मणिशंकर पाण्डेय ने बताया कि कड़ी मेहनत से पढ़ाई कर डिग्रियां हासिल की। इसके बाद सरकारी नौकरी पाने के लिए जद्दोजहद की लेकिन सफलता नही मिली। मजबूरन निजी स्कूल में जाकर पढाने लगे। मार्च माह से घर पर खाली बैठे है। शिक्षक राजदेव पाण्डेय ने बताया कि स्कूल में पढाने से गुजारा हो रहा था। इस समय काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सरकार भी प्राइवेट शिक्षकों को अनदेखा कर रही है। यह हाल शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश निजी शिक्षकों का है। बताते है कि अधिकांश स्कूल संचालकों ने अपने स्कूल के शिक्षकों को मार्च माह से अभी तक सैलरी भी नही दी है। हां इतना जरूर है कि कुछ शिक्षकों को नाम मात्र रुपए देकर इतिश्री कर ली। लाक डाउन के दौरान निजी शिक्षकों के जो कुछ जमां पूंजी थी वह भी समाप्त हो गई। स्कूल से भी सैलरी नही मिली।इससे वह काफी मर्माहत है ।

प्राइवेट शिक्षकों का क्या है दर्द

शिक्षा की मशाल जलाने वाले प्राइवेट शिक्षकों की जुवां पर एक ही सवाल है कि आखिर क्यों उनको सरकार अनदेखा कर रही है। उनके पास न पैसा है न आर्थिक सुरक्षा न सरकारी सहायता और न ही सामाजिक प्रतिष्ठा Iऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्राइवेट शिक्षक कभी साइकिल से तो कभी पैदल ही स्कूल में समय से पहुंचकर बच्चों के भविष्य को सवांरता है। समाज में शिक्षा की मशाल जलाते हुए प्राइवेट शिक्षक कड़ी मेहनत करते है लेकिन फिर भी उनकी तरफ सरकार ध्यान नही देती।

क्या कहना है प्रबन्ध तन्त्र का

निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का मार्च माह से वेतन न मिलने की वजह जानने को लेकर कुछ स्कूल संचालकों से बात की गई। उनका कहना था कि अभिभावक अपने बच्चों की फीस जमा नही कर रहे है। इससे शिक्षकों का वेतन नही निकल पा रहा है। इस बात से सवाल उठता है कि अगर फीस जमा नही हुई तो क्या शिक्षकों को भी उनकी सैलरी नही दी जाएगी। जानकारी के अनुसार निजी स्कूल संचालक कोई न कोई बहाने से फीस जमा करा रहे है। लेकिन शिक्षकों को सैलरी देने से कतरा रहे है।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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