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4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश हुआ भारत की आजादी का बिल ‘द इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट



नई दिल्ली। 1900 के बाद से ही भारत में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी पकड़ने लगा था। कांग्रेस अब तक एक बड़ी पार्टी बन चुकी थी। गांधी जी के अहिंसक शस्त्र से भी अंग्रेज मुश्किलों में थे। साथ ही भारत में सांप्रदायिक ताकतें भी मजबूत होती जा रही थीं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन भी कमजोर हो चुका था। यानी ब्रिटिशर्स पर भारत को आजाद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था। आखिरकार ब्रिटिशर्स ने भारत को आजाद करने का फैसला लिया।


20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने घोषणा की कि 30 जून 1948 तक ब्रिटेन भारत को आजाद कर देगा। भारत कैसे आजाद होगा इसकी पूरी योजना बनाने की जिम्मेदारी मिली लॉर्ड माउंटबेटन को।


माउंटबेटन भारत आए और अपने काम में जुट गए। उन्होंने सबसे पहले एक डिकी बर्ड प्लान बनाया जिसे नेहरू ने रिजेक्ट कर दिया। उसके बाद माउंटबेटन ने एक और प्लान बनाया जिसे 3 जून प्लान भी कहा जाता है।

आजादी के प्लान पर नेहरू, जिन्ना और बाकी लोगों से चर्चा करते लॉर्ड माउंटबेटन।


इस प्लान को पेश करते हुए माउंटबेटन ने कहा था कि भारत को आजाद करने के लिए विभाजन ही एकमात्र रास्ता है। इसके मुताबिक भारत को आजादी तो मिलेगी लेकिन साथ ही विभाजन भी होगा और एक नया देश पाकिस्तान बनेगा।


रियासतों को ये सुविधा दी जाएगी कि वे भारत या पाकिस्तान किसी के साथ भी मिल सकती हैं। प्लान में ये भी कहा गया कि दोनों देश संप्रभु राष्ट्र होंगे और अपना-अपना संविधान बना सकते हैं। इस पूरे प्लान को 4 जुलाई 1947 को ब्रिटिश पार्लियामेंट में पेश किया गया और नाम दिया गया ‘द इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट’।


ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इस बिल को 18 जुलाई को पास कर दिया और इसी के साथ भारत की आजादी का रास्ता भी साफ हो गया। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बना और उसके एक दिन बाद भारत आजाद हुआ। नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और लियाकत अली खान पाकिस्तान के।


1776: अमेरिका आजाद हुआ


आज अमेरिका अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आज ही के दिन 1776 में ब्रिटेन की 13 कॉलोनियों ने मिलकर आजादी की घोषणा की थी जिसे ‘डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस’ भी कहा जाता है। दरअसल अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलंबस ने गलती से की थी।


कोलंबस यूरोप से भारत आने के लिए एक समुद्री रास्ता खोज रहे थे। कोलंबस अपने जहाज से भारत के लिए निकले लेकिन अमेरिका पहुंच गए। हालांकि कोलंबस को खुद बाद में पता चला कि ये भारत नहीं अमेरिका है।


यात्रा से लौटने के बाद जब कोलंबस ने बताया कि उन्होंने एक नया द्वीप खोज लिया है तो अलग-अलग देशों में इस जगह पर कब्जा करने की होड़ मच गई। ब्रिटेन के लोग बड़ी तादाद में यहां आ गए और राज करने लगे।

अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन। इन्हीं के नाम पर अमेरिका की राजधानी का नाम रखा गया है।


भारत की तरह ही ब्रिटिशर्स ने वहां भी लोगों पर अत्याचार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि ब्रिटिशर्स और मूल अमेरिकियों में टकराव बढ़ने लगा। लंबे संघर्ष के बाद आज ही के दिन इन 13 कॉलोनियों ने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर खुद को आजाद घोषित कर दिया।


स्वतंत्रता संघर्ष के लिए लड़ाई लड़ने वाले जनरल जॉर्ज वॉशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। 13 कॉलोनियों से बढ़कर अमेरिका में आज 50 राज्य हैं। अमेरिका के झंडे में इन 13 कॉलोनियों को 13 नीली सफेद पट्टियों से दर्शाया जाता है वहीं हर राज्य के लिए झंडे में एक सितारा है। फिलहाल अमेरिका में 50 राज्य है जो झंडे में 50 सितारों द्वारा दर्शाए गए हैं।


1934: एटम बम के पेटेंट के लिए आवेदन


आज ही के दिन लियो जिलार्ड ने एटम बम के पेटेंट के लिए आवेदन दिया था। मई 1932 में जैम्स चेडविक ने न्यूट्रॉन की खोज की थी। इसके कुछ महीनों बाद ही लियो के दिमाग में ये बात आ गई थी कि न्यूट्रॉन चेन रिएक्शन के जरिए एटॉमिक एनर्जी को नियंत्रित किया जा सकता है, और इसका उपयोग बम बनाने में भी हो सकता है।


1933 में जब जर्मनी में हिटलर सत्ता में आ गया तो लियो इंग्लैंड आ गए। इंग्लैंड में रहने के दौरान ही उन्होंने न्यूक्लियर चेन रिएक्शन पर स्टडी की और अमेरिका के अलग-अलग कॉलेज में बतौर गेस्ट लेक्चरर पढ़ाने जाने लगे।


1934 में आज ही के दिन लियो ने एटॉमिक बम के लिए पेटेंट फाइल किया। अपने पेटेंट में उन्होंने न्यूट्रॉन चेन रिएक्शन के जरिए एटॉमिक बन बनाने की बात कही थी। कहा जाता है कि इस आइडिया को पेटेंट कराने का उद्देश्य एटम बम के गलत इस्तेमाल को रोकना था। लियो ने ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों से बात कर इस तकनीक को ब्रिटिश सिक्रेट लॉ के तहत गुप्त रखने की बात भी कही थी।


1940 में उन्हें अमेरिका की नागरिकता मिल गई और वे न्यूयॉर्क में रहने लगे। जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तब लियो को लगा कि जर्मनी कहीं एटम बम न बना ले इसलिए उन्होंने न्यूक्लियर चेन रिएक्शन से जुड़ी हर किताब को दुकानों से हटा दिया।

अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ लियो जिलार्ड।


उन्होंने राष्ट्रपति रुजवेल्ट को एक खत लिखा जिसमें न्यूक्लियर चेन रिएक्शन के जरिए न्यूक्लियर वेपन बनाने का जिक्र था जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। इसके लिए उन्होंने सरकार से सहमति और वित्तीय मदद भी मांगी।


रुजवेल्ट ने इस प्रोजेक्ट के लिए हामी भर दी और पैसे भी दिए। लियो अपने काम में लग गए। उन्होंने चेन रिएक्शन के लिए जरूरी ग्रेफाइट और यूरेनियम इकट्ठा किया और 2 दिसंबर 1942 को पहली बार शिकागो यूनिवर्सिटी में न्यूक्लियर चेन रिएक्शन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।


4 जुलाई के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…


1997: नासा का मार्स पाथ फाइंडर सात महीने के सफर के बाद मंगल ग्रह पर पहुंचा।


1996: फ्री इंटरनेट ई-मेल सर्विस हॉटमेल की शुरुआत हुई। अगले ही साल इसे माइक्रोसॉफ्ट ने खरीद लिया।


1960: अमेरिकी झंडे में 50वें सितारे को जोड़ा गया जो नए राज्य हवाई का प्रतिनिधित्व करता है।


1902: स्वामी विवेकानंद का 39 साल की उम्र में निधन हुआ।


1884: स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी को फ्रांस ने अमेरिका को गिफ्ट किया।

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