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बचपन में ही रामबदन भगत को मां काली ने दिया था दर्शन

 




बलिया: इस भौतिकवादी युग में वैसे तो आपने तमाम संतो और बाबाओं का नाम सुना होगा, लेकिन हम यहां आपको एक ऐसे संत की जीवनी से रूबरू करा रहे हैं, जो पारिवारिक जीवन में रहते हुए अपना सर्वस्व दूसरों के लिए निछावर कर दिया है.मां काली की उपासना और आने वाले दिन दुखियों का कल्याण अब उनके जीवन का लक्ष्य बन गया है.




बलिया जिले के फेफना थाना क्षेत्र के वैयना गांव के मूल निवासी स्वर्गीय बालचंद्र राम और श्रीमती लक्ष्मीना देवी की पुत्र और पकड़ी धाम काली मंदिर के पुजारी राम बदन भगत  का जन्म सन उन्नीस सौ 72 में हुआ था, चार भाई और दो बहनों में  तीसरे नंबर की संतान रामबदन का बचपन सामान्य बच्चों की तरह नहीं था. उनके बचपन का अधिकांश समय ननिहाल हल्दी थाना क्षेत्र के हल्दी गांव में व्यतीत हुआ था.




बताते हैं कि बचपन के दिनों में जब वह पढ़ने के लिए स्कूल जाते थे तब रास्ते में उनको बुढ़िया माई का दर्शन होता. वह जब उनके सामने आती थी चारों तरफ धुआँ छा जाता था. उस समय वह अपनी पूजा करने की बात कहतीं थी. लेकिन तब बालक राम बदन को इन सब बातों पर विश्वास नहीं होता था. 



किशोरावस्था आते आते हिंदुस्तान पैट्रोलियम कोलकाता में नौकरी लग गई और विवाह नौकरी करने लगे इसी दरमियान उनकी प्रमिला से शादी हुई. पूजा पाठ से दूर रामबदन अपने कर्म को ही पूजा मानकर नौकरी करने लगे. 




इसी दौरान एक घटना हुई, जिसने उनके जीवन को न सिर्फ बदल दिया बल्कि नए रामबदन भगत का उद्भव ही हुआ. हुआ यूं कि रामबदन हिंदुस्तान पैट्रोलियम नौकरी कर रहे थे कि अचानक खराब हो गई. काफी इलाज के बाद भी जब वह स्वस्थ नहीं है तो मां काली की उपासना करने का की सलाह दी कैंपस परिसर में ही स्थित मां काली के मंदिर मैं रामबदन आने जाने लगे यहीं से उनके जीवन का नया उदय हुआ. इसके बाद रामबदन भगत ने गांव आकर अपनी कृषि योग्य भूमि इसके बाद रामबदन भगत ने गांव आकर अपने खेत में मां काली के मंदिर का निर्माण कराया, जो पकड़ी धाम के नाम से मशहूर है.






वैसे इस परंपरा की शुरुआत अन्यास  ही नहीं हुई बल्कि इसकी नींव पुजारी राम बदन भगत की सातवीं पीढ़ी के पूर्वज बाबा धन सिंह ने रखी थी. 






कहते हैं कि तब बाबा धन सिंह ने अपने योग और तप के बल पर भवानी को प्रसन्न कर उन्हें अपना अराध्य बनाया था और माँ भवानी की कृपा से दीन दुखियों का कल्याण करते थे. हालांकि धन सिंह के बाद यह परंपरा कुछ हद तक बंद हो गई थी, जिसे आठवीं पीढ़ी में राम बदन भगत ने पुनर्जीवित किया.



इसे चमत्कार के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता कि जिस बीमारी को ठीक करने के लिए ने डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे वह मां काली के दर्शन मात्र से ही ठीक हो गई.




 इसके बाद से रामबदन का हृदय परिवर्तित हो गया और वह नौकरी छोड़ कर मां की उपासना में लीन हो गए. वर्ष 2007 में नौकरी छोड़ दो वह गांव लौट आए और अपने बाबा धन सिंह की परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए मां काली की पिंडी की स्थापना कराई . इसके बाद  वहां मंदिर का निर्माण करें आज स्थिति यह है कि वह स्थान न सिर्फ पकड़ी धाम काली मंदिर के रूप में विख्यात है बल्कि ऐसी मान्यता है कि जिस बीमारी को डॉक्टर से ठीक ना कर पाए वह पकड़ी धाम स्थित काली मां के दर पर मत्था टेकने मात्र से दूर हो जाती है तभी तो रोज सैकड़ों की तादात में लोग अपनी पीड़ा के समाधान के लिए मां के दर पर हाजिरी लगाते हैं.



डेस्क


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