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हिन्दी दिवस पर विशेष : हिन्दी भाषा नही भावों की अभिव्यक्ति है : डा० प्रमोद पाण्डेय

 


रतसर (बलिया) हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। हिन्दी के विकास में पत्र-पत्रिका, सीरियल, हिन्दी फिल्मों का प्रमुख योगदान रहा है। देश दुनिया के लोगों में हिन्दी के प्रति सकरात्मक बदलाव आया है। हिन्दी दिवस पर मंगलवार को जनऊबाबा साहित्यिक संस्था निर्झर के तत्वाधान में हनुमत सेवा ट्रस्ट जनऊपुर के परिसर में  "हिन्दी भाषा नही भावों की अभिव्यक्ति" विषयक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जवाहर नवोदय विद्यालय अल्मोड़ा के प्राचार्य डा० प्रमोद पाण्डेय ने अपने व्याख्यान में बताया कि नई शिक्षा नीति में बच्चों को सीखने की क्षमता को हीनता बोध से बाहर लाने के लिए मातृभाषा में शिक्षा की बात की गई है, जिसमें आजादी के समय से ही बहस चल रही है। जिसमें मुख्य रूप से महात्मा गांधी द्वारा " नई तालीम " शिक्षा प्रणाली मातृभाषा के द्वारा शिक्षा की हिमायती थी लेकिन आजादी के बाद यह व्यवस्था महात्मा गांधी जी की मृत्यु के उपरान्त विचार बनकर रह गई। पूर्व प्रवक्ता प्रेम नारायन पाण्डेय ने कहा कि अंग्रेजी हमारी मातृभाषा नही है फिर भी इसकी अनिवार्यता ने हमें अपनी मातृभाषा व राष्ट्रभाषा से दूर अंग्रेजी को कार्यभाषा बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। अध्यात्मवेत्ता एवं पूर्व प्रधानाचार्य पं० भरत पाण्डेय ने कहा कि देश की प्रतिष्ठित सेवाओं में शुमार संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा इंग्लिश के वर्चस्व को तोड़ने में नाकाम रही,क्योंकि यहां हर साल परीक्षा में चयनित विद्यार्थियों में अधिकांश का परीक्षा माध्यम अंग्रेजी होता है। कुछ गिने चुने छात्र होते है जो अपनी मातृभाषा और हिन्दी भाषा के जरिए इस पद तक पहुंच पाते है। इस अवसर पर आर्किटेक्ट इं.  श्री गणेश पाण्डेय, इं. तारकेश्वर पाण्डेय, जेई करीमन राम, हृदयानन्द पाण्डेय, शिव प्रसाद पाण्डेय आदि वक्ताओं ने गोष्ठी को संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता निर्झर के संयोजक धनेश पाण्डेय एवं संचालन मनोज कुमार पाण्डेय ने किया।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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