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सूर्योपासना, आस्था एवं संस्कृति के संगम का महापर्व है : छठ पूजा

 




रतसर (बलिया) भारत पर्वो, व्रतों एवं परम्पराओं का देश है। जहां प्रायः हर महीने कोई ना कोई त्योहार,व्रत या पूजा रहती ही है। आश्विन और कार्तिक मास के महीने में तो त्योहारों की झड़ी सी लग जाती है। जिनमें लोक आस्था और सूर्योपासना का पर्व छठ की छटा और महत्ता ही कुछ अलग है। इस व्रत का आरंभ महाभारत युग में कुंती द्वारा किए गए सूर्योपासना और कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है। मान्यता है कि सूर्यदेव और उनकी बहन छठ मईया को प्रसन्न करने के लिए कुंती ने सूर्यदेव की पूजा की थी जिसके फल स्वरूप उन्हें कर्ण रुपी पुत्र की प्राप्ति हुई थी। छठ में पवित्र नदियों व पोखर में उदीयमान और अस्ताचल गामी सूर्य को देखकर उनकी आराधना की जाती है। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी माता को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मईया संतानों की रक्षा करती है। और उनको दीघार्यु प्रदान करती है इसलिए छठ मईया को प्रसन्न करने के लिए छठ पूजा का उपवास पूर्ण विधि विधान, सात्विकता व स्वच्छता के साथ रखा जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन " खरना " उपवास करने वाले लोग सूर्योदय से पहले स्नान करके अरुणोदय तक जल में खड़े होकर सूर्योपासना करते है और उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-आराधना करते है।



रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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