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मनुष्य का अभीष्ट धन धर्म होता है : लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी




दुबहर, बलिया : समस्त इंद्रियों की मालिक आत्मा होती है।  शरीर और इंद्रियों का संचालन कर्ता मन  है।  आत्मा और मन को ईश्वर से जोड़ने वाला योग होता है।  इंद्रियों को और इंद्रियों के स्वभाव को आत्मा को मन सहित परमात्मा के साथ जोड़ना तथा चित्त की चंचलता को रोकना योग होता है। 

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान कही। 

स्वामी जी ने बतलाया कि योग चार प्रकार के होते हैं। मंत्र योग, लययोग, हठयोग ,राजयोग। 

राजयोग आठ प्रकार के होते हैं यम ,नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि अष्टांग योग की सबसे अंतिम स्थिति समाधि की होती है।यम बारह प्रकार के होते हैं अहिंसा, सत्य, अस्तेय ,असंगति, लज्जा ,असंचय,आस्तिकता , ब्रह्मचर्य ,मौन, स्थिरता ,क्षमा और अभय। नियमों की संख्या भी बारह होती है।  शौच, जप ,तप,हवन, श्रद्धा ,अतिथि सेवा ,पूजा ,तीर्थयात्रा ,परोपकार, संतोष, गुरु व सेवा। उन्होंने कहा कि धर्म मनुष्यों का अभीष्ट धन होता है। यज्ञ ही कलयुग में साक्षात भगवान है। 

जो मनुष्य भगवान के लिए परमात्मा के लिए धन और सुख का त्याग करता है ,वह परम गति को प्राप्त करता है। उसके हृदय में सद्गुणों की वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि  भगवान के प्रति भक्त को अटूट श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने कार्यों का फल समर्पित करना ही भक्ति योग होता है। भक्ति योग में भक्तों को कभी भी जीवन में विचलित नहीं होना पड़ता है। क्योंकि वह अपना सर्वस्व भगवान में ही समर्पित कर देता है।



रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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