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परिश्रम से अर्जित धन में होता है भगवान का वास:-जीयर स्वामी



दुबहर:-सतयुग में धर्म के चार पैर होते हैं।  सत्य, तप, दया, दान। 

त्रेता युग में धर्म के तीन पैर होते हैं सत्य रूपी पैर  त्रेतायुग में टूट

 जाता है। द्वापर युग में धर्म के दो पैर टूट जाते हैं, सत्य और तप।  कलयुग में धर्म के तीन पैर सत्य ,तप,दया टूट जाते हैं। 

कलयुग सिर्फ दान पर टिका हुआ है। सतयुग में समाधि लगाने से, त्रेता युग में तपस्या करने से ,द्वापर में तीर्थ करने से जो पुण्य प्राप्त होता था वही पुण्य कलयुग में भगवान का कीर्तन करने से प्राप्त होता है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी सन्त त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्य जीयर स्वामी जी ने जनेश्वर मिश्र सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चतुर्मास व्रत में  प्रवचन में कही। 

उन्होंने कहा कि अनीति ,अन्याय से जो धन, संपत्ति कमाई जाती है वहा पर भी कलयुग का वास होता हैं। परिश्रम करके जो धन संपत्ति प्राप्त की जाती है उसमें भगवान श्री कृष्ण का वास होता है।वेश्यालय ,मदिरालय ,जुआ खेलने वाली जगह ,अहिंसा वाली जगह पर कलयुग का वास होता हैं।कहा कि मन को जगत के साथ साथ जगदीश से जोड़कर मोछ को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में बताया गया है कि बंधन और मोक्ष का कारण मन होता है। मन को दुनिया मे लगाने से अच्छा भगवान की भक्ति में लगाना चाहिए।

रिपोर्ट:-नितेश पाठक

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