अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति स्वर्ग को प्राप्त होता है :-जीयर स्वामी
दुबहर:-भक्त बनने के लिए भक्ति करनी पड़ती हैं। जो भी हमारे पास है उसे जीवन के आचरण में उतारना ही भक्ति होती है।
भक्ति में अपनी अनुकूलता के प्रति ध्यान नहीं रहता है बल्कि सारा ध्यान भगवान के प्रति चला जाता है इसे भक्ति कहा जाता है। भक्ति सोलह प्रकार की होती हैं। रामचरितमानस के अनुसार प्रथम भक्ति संतों की संगत करना होता है।संत को सिद्ध होना चाहिए, सत्य संप्रदाय होना चाहिए, मन स्थिर होना चाहिए, वेद को जाने वाला होना चाहिए ,परमात्मा में निष्ठा करने वाला होना चाहिए ,सत्य मय जीवन जीने वाला होना चाहिए ,सादगी होनी चाहिए ,दम्भ नहीं होना चाहिए ,इंद्रियों को जीतने वाला होना चाहिए ,दयालु होना चाहिए ऐसे व्यक्ति को उपनिषद के अनुसार संत कहा गया है।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज की कृपा पात्र परम शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि जीवन जीने के लिए जो भी वस्तु होती हैं वह सभी हमारे प्रारब्ध के अनुसार हमें प्राप्त हो जाती है। कभी भी हमे अपने मन ,कर्म वचन से किसी को कष्ट नही पहुचना चाहिए।
उन्होंने बतलाया कि इस संसार मे अगर हम अच्छे कर्म करते है, तो हम स्वर्ग में है ,और स्वर्ग में जाएंगे। अगर हम इस संसार मे गलत कर्म करते है, तो हम नर्क में है और नर्क में जाएंगे।
उन्होंने बतलाया कि मुक्ति चार प्रकार की होती हैं।
सालोक्य - जीव भगवान के साथ उनके लोक में ही वास करता हैं।
सामीप्य- जीव भगवान के सन्निध्य में रहते कामनाएं भोगता हैं।सारूप्य - जीव भगवान के साम्य (जैसे चतुर्भुज) रूप लिए इच्छाएं अनुभूत करता हैं।
सायुज्य - भक्त भगवान मे लीन होकर आनंद की अनुभूति करता हैं।
रिपोर्ट:-नितेश पाठक
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