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संस्कार ,संस्कृति व सभ्यता की रक्षा करना हम सबका परम कर्तव्य:- जियर स्वामी





दुबहर :- सबसे बड़ा दुर्भागी व्यक्ति वह है जो दुनिया की हर सत्ता को मानता है लेकिन परमात्मा की सत्ता को चुनौती देता है। वह सबसे बड़ा दुर्भागी व्यक्ति है। वह सब कुछ मानता है। भोजन मानता है, धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा सब कुछ मानेंगा। परंतु चुनौती  भगवान की सत्ता को देता है। वह दुनिया का सबसे बड़ा दुर्भागी व्यक्ति है।  सुख तथा दुःख हमारे  किए हुए कर्मो के ही फल है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।

स्वामी जी ने बतलाया की संसार मरणशील है, नश्वर है, सबका एक न एक दिन क्षय, विनाश होना निश्चित  है। जो जिस दिन से बना उसी दिन से उसका बिगडना शुरू हो जाता है। उन्होंने कहा कि संस्कार, संस्कृति व सभ्यता की रक्षा करना हम सबका परम कर्तव्य है।

बतलाया की प्रलय पांच प्रकार के होते  है।

पहला नित प्रलय है इसका मतलब रोज दुनिया में जो परिवर्तन जो होता है ,यह नित प्रलय है। अभी जो है ,कुछ समय बाद नही रहेगा। जब ब्रम्हा जी शयन करते हैं तो नैमित्तिक प्रलय होता है।

तीसरा आत्यांतिक प्रलय होता है। इसमें प्रकृति हर क्षण, हर स्थिति को अपने अनुसार नियंत्रित करती है। जैसे भूकंप, सुनामी इत्यादि। चौथा है प्रलय होता है। इसमें प्रकृति की स्थितियां अस्त व्यस्त हो जाती है। पेड़ों की सत्ता नही रह पाती है। वृक्षों की सत्ता नही रह पाती है। पहाड़ों की सत्ता नही रह पाती है। जल की सत्ता नही रह पाती है। पांचवा होता है महाप्रलय। इस महाप्रलय में कोई बचता नही है। भगवान नारायण को छोड़कर कोई भी बचता नही है।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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