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नारी संस्कार व संस्कृति की प्रतीक:- जीयर स्वामी



दुबहर :- नारी राष्ट्र, समाज की शक्ति होती है, नारी का दमन कभी नहीं करना चाहिए। जिस घर में नारियों को प्रताड़ित किया जाता है उस घर से भगवान नाराज हो जाते हैं। नारियों से दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति घोर नरक का अधिकारी होता है।  वही जिस घर में नारियों की पूजा होती है, सम्मान होता है वहां पर लक्ष्मी माता की कृपा सदैव बनी रहती है। नारी संस्कार व संस्कृति की प्रतीक होती है। 

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में सोमवार की देर शाम अपने प्रवचन में कही। 

स्वामी जी ने बतलाया की भक्ति सिर्फ गंगा स्नान और मंदिर में पूजा करना ही नहीं होती, बल्कि ईश्वर का भजन करना, सत्कर्म करना, स्वामी, समाज एवं मानवता की सेवा करना भी भक्ति है।  जीयर स्वामी जी ने कहा कि कलियुग में लम्बे समय तक चलने वाले अनुष्ठान को नहीं करना चाहिए। क्योंकि लम्बे समय तक चलने वाले अनुष्ठान मे चूक व त्रुटि की संभावनाएं अधिक होती हैं।  उन्होंने कहा कि भगवान को प्राप्त करने का सरल तरीका भक्ति है। भगवान अपने भक्तों में अमीर, कुलीनता, वृद्ध, बालक, मनुष्य और जानवर का भेद नहीं करते। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में शुभ अशुभ कार्योका प्रतिफल अवश्य भोगना पड़ता है।

जाने अनजाने में अगर कोई पाप होता है तो, संत के पास एवं तीर्थ में जाकर उसका मार्जन किया जा सकता है।  लेकिन तीर्थ और संतो के यहाँ किये गये अपराध का मार्जन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि भक्ति और भगवान के आश्रय में रहकर सुकर्म करते हुए अपने अपराधों के प्रभाव को कम किया जा सकता है, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है।   प्रारब्ध या होनी का समूल नाश नहीं होता। प्रारब्ध का भोग भोगना ही पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रारब्ध अवश्यमेव भोक्तव्यम्। ईश्वर की भक्ति या गुरु की पूजा से प्रारब्ध के प्रभाव को कम किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के भाग्य में  उसके पिछले जन्मों के कुकर्मो के कारण शूली पर चढ़ना लिखा है, तो इस जन्म के ईश्वर-भक्ति या गुरू की कृपा से प्रारब्ध की शूली ,शूल का रूप ले सकती है। प्रारब्ध को मिटाया नहीं जा सकता, उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।


रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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