ईश्वर की भक्ति से अक्षय सुख शांति की प्राप्ति होती है :- जीयर स्वामी
दुबहर : भोग में रोग और सम्पति में विनाश संलग्न है अपनी वृद्धावस्था और मृत्यु का सदैव ख्याल रखना चाहिए।
मानव को अपना समस्त कर्म ईश्वर को समर्पित कर उन्हीं से अपना संबंध जोड़ना चाहिए । अन्यथा जीवन भर भय सताते रहेगा। जिस परिवार के भरण-पोषण के लिये व्यक्ति जीवन भर समस्त कर्म-कुकर्म कर संसाधन संग्रह करता है, वही परिवार वृद्धावस्था में उपेक्षा कर जीवन को बोझिल बना देता है। इसलिये मनुष्य को अपनी बुढ़ापे और मृत्यु को ध्यान में रखते हुए परमात्मा के प्रति समर्पित रहना चाहिए। सदाचारी और निर्लिप्त जीवन-यापन करने वाले व्यक्ति को कभी भय और उपेक्षा का दंश नहीं झेलनी पड़ती, क्योंकि वह ईश्वर से जुड़ा रहता है।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज की कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।
स्वामी जी ने कहा कि जब तक व्यक्ति धनोपार्जन के लिए सक्षम होता है, परिवार के सारे लोग उससे चिपके रहते हैं। लेकिन जब वही व्यक्ति बुढ़ापा के कारण जर्जर हो जाता है और धनोपार्जन के लिए समर्थ नहीं होता, तब परिवार का कोई भी सदस्य उससे बात भी नहीं करता है। इसलिए गोविन्द का भजन करें, यही जीवन की असली वस्तु है।
श्री जीयर स्वामी ने कहा कि मनुष्य को भोग में रोग का, सम्पति में विनाश, धन में राजा (सरकार), विद्या में कलह, तप में इंद्रियों की चंचलता, रूप में वासना, मित्रों में शोक, युद्ध में शत्रु और शरीर में व्याधि व मरण का भय रहता है। केवल ईश्वर के शरण में ही अभयता है। भगवान के भक्तों को भय नहीं सताता। वहीं अक्षय सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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