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संस्कार, संस्कृति, सभ्यता मनुष्य की पहचान :- जीयर स्वामी



दुबहर:- गंगा स्नान का मतलब अनीति, अन्याय, बेईमानी, अधर्म,पाप का त्याग से है।शास्त्र में बताया गया है कि जहां पर जिस घर में,  जिस समाज में,  ईश्वर को कभी याद न किया जाता हो, कभी चिंतन न किया जाता हो, कभी गुण गान न किया जाता हो वह घर श्मशान के समान बताया गया है। जहां पर सदाचारी,संत महात्मा, ज्ञानी स्त्रियों का आदर नही हो, बालकों को शिक्षा न दिया जाता हो वह घर भी श्मशान के समान बताया गया है। जहां पर जुआ खेला जाता है, शराब का व्यसन है, अनेक प्रकार खान पान उपद्रव कारी है मांस इत्यादि का सेवन होता हो वह भी घर श्मशान के समान बताया गया है।

उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जनेश्वर मिश्रा सेतु एप्रोच मार्ग के निकट हो रहे चातुर्मास व्रत में अपने प्रवचन के दौरान कही।


उन्होंने कहा कि भोजन तो अनेक योनियों में हम करते हैं शयन तो हम अनेक योनियों में  करते हैं। संतान उत्पति तो अनेक योनियों में करते हैं। केवल इसके लिए इस संसार में हम जन्म नही लिए हैं। यदि इन सबके लिए इस संसार में हम आए होते तो परमात्मा हम लोगों को मनुष्य नही बनाते बल्कि इसके जगह पर और कोई जन्तु बनाते। मानव की पहचान संस्कृति है, संस्कार है। सभ्यता है, सरलता है, सहजता है, कोमलता है। यदि यह मनुष्य में न हो केवल संसार में पशुओं के समान भोजन करे, संतानोत्पत्ति करे मनुष्य और पशु में कोई अंतर नही है।



रिपोर्ट:- नितेश पाठक

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