ईश्वर की शरणागति मोक्ष का आधार :- लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी
दुबहर:- मनुष्य को अहंकार मय जीवन नहीं जीना चाहिए । हम चाहे जो भी करते हैं परमात्मा अपनी शक्ति से हम लोगों को कठपुतली के समान नचाते है, ऐसा विचार कर हमें अपने जीवन से अनीति,अन्याय ,अत्याचार का त्याग कर देना चाहिए ।मानव को अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए लेकिन अहम का भाव अपने अंदर नहीं आने देना चाहिए।।
उक्त बातें भारत के महान मनीषी संत त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने महर्षि भृगु की पावन तपोस्थली पर आयोजित चातुर्मास व्रत में प्रवचन के दौरान कही।
स्वामी जी ने बताया कि गुरु और ईश्वर में भक्ति होनी चाहिए। गुरु हमारे जीवन का वह स्तर है जिसके माध्यम से हम अपने भूले भटके जीवन को सही मार्ग पर ला सकते हैं। गुरु केवल एक शरीर ही नहीं बल्कि एक उपदेश होता है, एक दिव्य आचरण होता है। जिसके द्वारा मनुष्य प्रशस्त मार्ग का अधिकारी होता है।
उन्होंने कहा कि प्रकाश वही देता है जो स्वयं प्रकाशित होता है। जिसका इंद्रियों और मन पर नियंत्रण होता है वही समाज में अनुकरणीय होता है।
स्वामी जी ने बताया कि भगवान की कथा सुनने से लोक ही नहीं बल्कि परलोक का जीवन भी सुधर जाता है। कथा श्रवण करने से हमें जीवन जीने की कला प्राप्त होती है। कहा कि भगवान की शरणागति करने से भगवान अपने भक्तों पर दया करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।
रिपोर्ट:- नितेश पाठक
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