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संतान की दीर्घायु की कामना को लेकर महिलाओं ने रखा निर्जला जिवित्पुत्रिका व्रत,सुनी कथा




रतसर (बलिया) पुत्र के दीर्घायु व उत्तम स्वास्थ्य के साथ परिवार में सुख-समृद्धि की कामना के लिए की जाने वाली जीवित्पुत्रिका व्रत प्रकृति से जुड़ा लोक परंपरा का उत्सव है। पूजा को लेकर क्षेत्र के चारों ओर उत्साह का माहौल है। रविवार को संतान की दीर्घायु और सुख- समृद्धि के लिए महिलाओं ने निर्जला व्रत रखा। आश्विन माह में कृष्ण- पक्ष के सातवें से नौवें चन्द्र दिवस तक मनाए जाने वाले जिउतिया पूजा अष्टमी को प्रदोषकाल में शनिवार की रात की गई। पूजा-अर्चना के बाद महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी। इस दौरान महिलाओं ने जिउतिया से जुड़े गीत गाते हुए नृत्य कर जागरण किया। धूमधाम से किए जाने वाले जिउतिया व्रत में महिलाओं ने भगवान जीमूतवाहन के साथ चील और सियारिन की भी पूजा की । मिट्टी के सियारिन व चील बनाकर पूजा - अर्चना के दौरान उन्हें चूड़ा-दही का प्रसाद चढ़ाया गया। मान्यता है कि कुश का जीमूतवाहन बनाकर पानी में उसे डाल बांस के पत्ते,चन्दन,फूल आदि से पूजा करने पर वंश की वृद्धि होती है। जिउतिया पूजा करने के दौरान चील व सियारिन की पूजा करने के पीछे दो वजहें हो सकती है I पौराणिक वजह तो कथा से जुड़ी हुई है,दूसरी वजह यह हो सकती है कि चील और सियारिन प्रकृति को साफ करने वाले जीव माने जाते है। पारण के दौरान व्रती महिलाएं पवित्र तालाब या अन्य जलाशयों में जीमूतवाहन राजा के प्रतीक स्वरूप गाड़े गए डाली के साथ मिट्टी व गोबर से बनी चील व सियारिन की प्रतिमा का विसर्जन करती है।


रिपोर्ट : धनेश पाण्डेय

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